एक छत के नीचे 12 राज्यों की संस्कृति का संगम
जागरण संवाददाता, देहरादून : देहरादून में सोमवार से शुरु हुई 14 दिवसीय रेशम एवं हथकरघा प्रदर्शनी म
जागरण संवाददाता, देहरादून :
देहरादून में सोमवार से शुरु हुई 14 दिवसीय रेशम एवं हथकरघा प्रदर्शनी में विभिन्न राज्यों की संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिला। 12 राज्यों से आए काश्तकारों की स्टॉल में पारंपरिक वेशभूषा एवं उत्पादों के माध्यम से देश की संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिल रहा है। तो वहीं प्रदर्शनी में देश की विश्व प्रसिद्ध मूगा सिल्क, चंदेरी, कांजीवरम, पूना साड़ियां महिलाओं के आकर्षण का केंद्र बन रही है।
राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम (एनएचडीसी) की ओर से 14 दिवसीय रेशम एवं हथकरघा प्रदर्शनी का देहरादून में आज शुभारंभ हो गया है। इसमें 12 राज्यों के करीब 60 काश्तकार समूह हिस्सा ले रहे है। इसमें रेशम व ऊन के गरम वस्त्र, पारंपरिक वेश-भूषा, दरियां, चादर की कई स्टॉल लगाई गई हैं। लेकिन विभिन्न राज्यों की पारंपरिक साड़ियां महिलाओं को खूब आकर्षित कर रही हैं। प्रदर्शनी में 40 से अधिक विश्व प्रसिद्ध साड़ियां शामिल की गई है।
एनएचडीसी के डीजीएम ईश्वर वी पाटिल ने कहा कि यह राष्ट्रस्तरीय रेशम एवं हथकरघा प्रदर्शनी है। विभिन्न राज्यों से आए काश्तकारों के उत्पादों के जरिए उनकी संस्कृति के बारे में हमें जानने का मौका मिल रहा है। कहा कि निगम की ओर से हथकरघा एवं हस्तनिर्मित उत्पादों को बढ़ावा दिया जाता है। साथ ही काश्तकारों के उत्पादों की गुणवत्ता प्रमाणित करने के लिए हैंडलूम मार्क व सिल्क मार्क भी दिये जाते है।
यह हैं प्रमुख साड़ियां
आंध्र प्रदेश की पोचमपल्ली, धरमावरम, गडवाल, असम की मूगा सिल्क, बिहार की तरस, कांथा, मधुबनी पेंटिंग, गुजरात की गठजोरा, पटोला, जम्मू कश्मीर की प्रिंटेड सिल्क, मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, महाराष्ट्र की पैठनी, पूना साड़ी, ओडिशा की बोम्कई, संबलपुरी, राजस्थान की बंधेज, छत्तीसगढ़ की कांथाए, ट्रायबल वर्क, कोसा सिल्क, यूपी की तनछुई, जामदानी, बनारसी (जामेदार), दिल्ली की प्रिंटेड सिल्क।