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अमेरिकी चिकित्सक कर रहे हैं आवारा कुत्तों की नसबंदी

अमेरिकी चिकित्सक कर रहे हैं आवारा कुत्तों की नसबंदी कर रहे हैं, क्योंकि त्तराखंड पशु कल्याण बोर्ड एनिमल बर्थ कंट्रोल एक अदद वेटरनरी एक्सपर्ट नहीं तलाश पा रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 11 Dec 2017 07:53 PM (IST)Updated: Tue, 12 Dec 2017 04:00 AM (IST)
अमेरिकी चिकित्सक कर रहे हैं आवारा कुत्तों की नसबंदी
अमेरिकी चिकित्सक कर रहे हैं आवारा कुत्तों की नसबंदी

देहरादून, [गौरव ममगाईं]: दून को आवारा कुत्तों के आतंक से निजात दिलाने के लिए उत्तराखंड पशु कल्याण बोर्ड एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) कार्यक्रम तो चला रहा है, लेकिन इसके लिए एक अदद वेटरनरी एक्सपर्ट (पशु चिकित्सक) नहीं तलाश पा रहा है। इसके लिए बाकायदा एक अमेरिकी संस्था के पशु चिकित्सकों की मदद ली जा रही है। बोर्ड संस्था कोएक कुत्ते की नसबंदी के लिए 840 रुपये का भुगतान कर रहा है। 

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दरअसल, देहरादून में कुत्ते के काटने के औसतन 20 से 25 मामले प्रतिदिन आ रहे हैंं। इन हालात को देखते हुए वर्ष 2016 में नैनीताल हाईकोर्ट ने आवारा कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण के लिए नसबंदी के निर्देश दिए थे और तय किया था कि प्रतिवर्ष अनिवार्य तौर पर 8400 केस किए जाने चाहिए। नवंबर 2016 में पशु कल्याण बोर्ड ने नगर निगम की मदद से अभियान शुरू किया। पशु कल्याण बोर्ड के संयुक्त निदेशक शरद भंडारी ने बताया कि नगर निगम क्षेत्र में आवारा कुत्तों की संख्या करीब 25 हजार है। उन्होंने बताया कि बोर्ड के पास कोई एक्सपर्ट वेटरनरी स्टाफ नहीं है। इसीलिए नसबंदी के लिए अमेरिकन संस्था स्ट्रे डॉग बर्थ कंट्रोल सोसायटी की मदद ली जा रही है। सोसायटी के साथ अनुबंध किया गया है। अनुबंध के तहत उन्हें एक कुत्ते के लिए 840 रुपये का भुगतान किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस साल जनवरी से नवंबर तक 7385 कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है। इसके लिए सोसायटी को करीब 62 लाख का भुगतान किया जा चुका है। 

10 फीसद से ज्यादा केस खराब 

संयुक्त निदेशक शरद भंडारी के अनुसार बोर्ड के पास कोई पशु चिकित्सक नहीं है। आवश्यकता पड़ने  पर नगर निकायों की मदद ली जाती है। इन चिकित्सकों को इस तरह का ज्यादा अनुभव नहीं है। ऐसे में ये आपरेशन के दौरान बड़ा कट लगाते थे, जिसमें आठ से दस टांके लगाए जाते थे। इसके अलावा करीब 12 फीसद केस खराब भी हो जाते थे। वहीं अमेरिकी संस्था के चिकित्सक तीन से चार टांके लगाते हैं और केस खराब होने की दर भी महज तीन फीसद है। 

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