हल्द्वानी,गढ़वाल,हरिद्वार,,, बिजली कार्मिकों के तेवर तल्ख, सरकार पर गरजे
जागरण संवाददाता, देहरादून: पे-मैट्रिक्स और पदोन्नत वेतनमान (एसीपी) के मुद्दे पर संयुक्त संघर्ष मंच क
जागरण संवाददाता, देहरादून: पे-मैट्रिक्स और पदोन्नत वेतनमान (एसीपी) के मुद्दे पर संयुक्त संघर्ष मंच के बैनर तले बिजली कार्मिकों ने यूपीसीएल मुख्यालय में सरकार और शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया। साथ ही तीनों निगम प्रबंधन पर आरोप लगाया कि इनके स्तर से सरकार और शासन को भ्रामक सूचना दी जा रही हैं। इससे पहले मंच की बैठक में आंदोलन की रणनीति पर चर्चा की गई। 25 नवंबर से आंदोलन चल रहा है और 27 नवंबर से कार्मिक शाम पांच से सुबह दस बजे तक विभागीय मोबाइल नंबर बंद रखते हैं।
मंच के कुमाऊं मंडल प्रवक्ता डीसी गुरुरानी और गढ़वाल मंडल प्रवक्ता दीपक बेनीवाल ने कहा कि सरकार का यही रवैया रहा तो राज्य गठन के बाद पहली बार बिजली कार्मिक पांच जनवरी से हड़ताल को मजबूर होंगे। कहा कि सरकार से कुछ अलग नहीं मांगा जा रहा है। पे-मैट्रिक्स की विसंगतियां दूर करने और पदोन्नत वेतनमान की पुरानी व्यवस्था को ही यथावत रखने की मांग की जा रही है। उन्होंने कहा कि पदोन्नत वेतनमान ऊर्जा निगमों में 9, 14, 19 वर्ष की सेवा पूरी होने पर मिलता था, लेकिन अब इस व्यवस्था को 10, 20, 30 वर्ष कर दिया है। बैठक में 12 और 13 दिसंबर को हल्द्वानी और रुद्रपुर में आंदोलन के तहत होने वाली सभा को सफल बनाने पर भी चर्चा हुई। मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि अगर शासन या प्रबंधन की ओर से किसी भी कार्मिक का उत्पीड़न किया तो उसी समय से हड़ताल शुरू कर देंगे।
उधर, उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा ने बताया कि शासन स्तर पर कर्मचारियों की मांगों पर कार्यवाही चल रही है। उम्मीद है कि हड़ताल की नौबत नहीं आएगी। बैठक में पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन, पावर जूनियर इंजीनियर्स एसोसिएशन, ऊर्जा ऑफीसर्स, सुपरवाइजर्स एंड स्टाफ एसोसिएशन, ऊर्जा कामगार संगठन से एमसी गुप्ता, दीपक पांडे, संदीप शर्मा, पवन रावत, बलवंत सिंह, गंगा सिंह ल्वांल, सोहन शर्मा, नितेश भट्ट, जगपाल सिंह, अवनीश गुप्ता आदि मौजूद रहे।
पे-मैट्रिक्स पर कार्यवाही तेज
सूत्रों की मानें तो पे-मैट्रिक्स के संबंध में शासन स्तर पर कार्यवाही तेजी से चल रही है। इसका संशोधित शासनादेश जल्द जारी हो सकता है। लेकिन, पदोन्नत वेतनमान की पुरानी व्यवस्था यथावत करने के पक्ष में सरकार और शासन नहीं है। अगर पे-मैट्रिक्स का मसला हल होता है और पदोन्नति का नहीं तो इसका असर आंदोलन पर पड़ सकता है। क्योंकि, कुछ कार्मिकों की प्राथमिक मांग पे-मैट्रिक्स है तो कुछ की एसीपी।