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आइपीडीएस और डीडीयूजीजे योजना में 130 करोड़ की गड़बड़ी

केंद्र की ओर से शुरू की गई समेकित विद्युत विकास योजना और दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना में उत्तराखंड में भारी वित्तीय अनियमितता सामने आई है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 05:17 PM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 05:17 PM (IST)
आइपीडीएस और डीडीयूजीजे योजना में 130 करोड़ की गड़बड़ी
आइपीडीएस और डीडीयूजीजे योजना में 130 करोड़ की गड़बड़ी

देहरादून, हरीश कंडारी। केंद्र की ओर से शुरू की गई समेकित विद्युत विकास योजना (आइपीडीएस) और दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजे) में उत्तराखंड में भारी वित्तीय अनियमितता सामने आई है। ऊर्जा निगम ने दोनों योजनाओं के लिए स्वीकृत लागत के 12 से 15 फीसद अधिक पर कंपनियों को ठेके देकर 130 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी की है। कै ग की रिपोर्ट में खुलासे के बाद शासन ने प्रबंध निदेशक ऊर्जा निगम को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। 

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दरअसल, वर्ष 2014 में केंद्र सरकार की ओर से शहरी क्षेत्रों में बिजली वितरण नेटवर्क को ठीक  करने और विद्युत व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए समेकित विद्युत विकास योजना(आइपीडीएस) व ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर विद्युत व्यवस्था सुचारू रखने के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की थी। इन दोनों योजनाओं के तहत, भूमिगत केबल, ट्रांसफार्मर बदलने, बिजली पहुंचाने, लाइनों की शिफ्टिंग आदि कार्य किए जाने थे। आइपीडीएस योजना के तहत उत्तराखंड में 37 प्रोजेक्ट स्वीकृत हुए। जिसके लिए 190.68 करोड़ रुपये की डीपीआर यूपीसीएल की ओर से बनाई गई।

इस योजनाओं की देखरेख के लिए बनी मॉनिटरिंग कमेटी ने इसको अपनी स्वीकृति दे दी, लेकिन इसके बाद यूपीसीएल ने स्वीकृत लागत के विपरीत 219.71 यानि 29.03 करोड़ अधिक में कंपनियों को ठेके दे दिए। जो स्वीकृत धनराशि के 15.22 फीसद अधिक है। इसी प्रकार की वित्तीय गड़बड़ी दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना में भी सामने आई है। योजना के तहत 13 जनपदों के लिए विभिन्न कार्यों के लिए 837.73 करोड़ मॉनिटरिंग कमेटी ने स्वीकृत किए थे। 

लेकिन, यूपीसीएल की ओर से स्वीकृत लागत के सापेक्ष 938.96 करोड़ रुपये यानि 101.23 करोड़ रुपये अधिक में विभिन्न कंपनियों को ठेके दे दिए। जो स्वीकृति लागत से 12 प्रतिशत अधिक है। महालेखाकार (लेखा परीक्षा) उत्तराखंड की ऑडिट में दोनों योजना में 130.26 करोड़ की गड़बड़ी सामने आने के बाद शासन ने प्रबंध निदेशक यूपीसीएल को नोटिस भेजकर जबाब मांगा है। 

यूपीसीएल का तर्क

इस मामले में उत्तराखंड पॉवर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में योजना के लिए कई बार टेंडर डाले गए, लेकिन टेंडर के लिए कंपनियों के आगे न आने के कारण डीपीआर की लागत बढ़ानी पड़ी। लिहाजा डीपीआर में जो राशि स्वीकृत की गई थी उससे ज्यादा में टेंडर देने पड़े। यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा का कहना है कि कै ग की आपत्तियों के बाद शासन ने जो नोटिस भेजा था, उसका जवाब शासन को बिंदुवार भेज दिया गया है।

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