बेबस मां बोली, मेरा सोना ट्यूशन गया था; क्यों नहीं लौटा Dehradun News
पुष्कर मंदिर मार्ग पर व्यवस्था की लापरवाही के चलते एक होनहार ने अपनी जान गवा दी। श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज में 11वीं कक्षा के छात्र केतन पुत्र हुकुम सिंह की मौत हो गई।
ऋषिकेश, जेएनएन। मेरा सोना ट्यूशन गया था, उसे आठ बजे घर आना था, अभी तक नहीं आया। उसे ढूंढ कर लाओ... मेरा सोना कहां चला गया...। यह शब्द उस बेबस मां कोनिका के हैं, जिसे नहीं पता कि अब उसका सोना कभी लौटकर नहीं आएगा। पुष्कर मंदिर मार्ग पर व्यवस्था की लापरवाही के चलते एक होनहार ने अपनी जान गवा दी। श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज में 11वीं कक्षा के छात्र केतन पुत्र हुकुम सिंह की मौत हो गई। कोनिका को कोई स्पष्ट नहीं बता पा रहा है।
कोनिका बार-बार यही दोहरा रही है कि उसका सोना (केतन) कहां है। शिक्षक रंजन अंथवाल ने बताया कि केतन ने पंजाब सिंध क्षेत्र इंटर कॉलेज से गत वर्ष 85 प्रतिशत से भी अधिक प्रतिशत अंक पाकर हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की। केतन की रुचि भौतिक विज्ञान व गणित में थी। पीएसके इंटर कॉलेज में यह दोनों विषय नहीं थे, लिहाजा केतन को श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज में 11वीं कक्षा में पीसीएम के रूप में एडमिशन लेना पड़ा। केतन को भौतिक विज्ञान में आगे बढऩा था, इसलिए उसने अपने मित्र विशाल के साथ फिजिक्स का ट्यूशन भी लगाया था।
विशाल और केतन प्रतिदिन एक साथ इसी मार्ग से होकर ट्यूशन पढऩे जाते थे। केतन के मित्र विशाल ने बताया कि आज वह किसी कारणवश ट्यूशन के लिए लेट हो गया और विशाल, केतन के साथ ट्यूशन नहीं जा पाया। विशाल केतन की मौत की सूचना से गमगीन है। उसका कहना है कि रोज की भांति यदि वह भी विशाल के साथ होता तो ना जाने क्या होता। बहरहाल केतन का परिवार और विशाल सभी गहरे सदमे में हैं। परिजनों ने बताया कि केतन का परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर है। उसके पिता हुकुम सिंह कॉस्मेटिक की ठेली लगाते हैं। पूरे परिवार को केतन की प्रतिभा पर ही आस थी। मगर अब आस का वह तारा भी डूब गया।
64 वर्ष पूर्व निर्मित विद्यालय की नहीं ली किसी ने सुध
वर्ष 1956 में जब प्राथमिक विद्यालय के रूप में भवन का उद्घाटन हुआ था, तो ऋषिकेश क्षेत्र का यह मुख्य सरकारी विद्यालय होता था। जर्जर हो चुके विद्यालय भवन की अगर सुध ले ली गई होती तो एक छात्र की जान बच जाती।
ऋषिकेश क्षेत्र में जब निजी विद्यालयों का विस्तार नहीं हुआ था तब शिक्षा व्यवस्था सरकारी स्कूलों पर ही निर्भर थी। 13 सितंबर 1956 को तत्कालीन जिलाधिकारी एम बट्ट ने नगरपालिका के चेयरमैन हीरालाल अग्रवाल की उपस्थिति में इसका उद्घाटन किया था। उस समय नगर पालिका प्राथमिक विद्यालय का संचालन करती थी। पालिका में रघुवीर ङ्क्षसह रावत शिक्षा अध्यक्ष हुआ करते थे। वर्ष 1980 में यह विद्यालय नगर पालिका की ओर से शिक्षा विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया था। विद्यालय भवन का सुधार तो नहीं हुआ यहां एक हिस्से में एक जुलाई 1999 को राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय खोल दिया गया।
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बुधवार की शाम जहां दीवार गिरी है वह हिस्सा पूर्व माध्यमिक विद्यालय से ही लगा है। कुछ वर्ष पूर्व नाभा हाउस में संचालित होने वाले आवासीय विद्यालय छात्रावास को भी इस परिसर में स्तांतरित कर दिया गया। जिसमें वर्तमान में 50 बच्चे रहते हैं। घटना के वक्त इन बच्चों की रात्रि कालीन क्लास चल रही थी। अन्य दिनों में यह बच्चे विद्यालय के पिछले गेट से निकलकर आवागमन करते रहे हैं।
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