Uttarakhand Temple: चमू देवता मंदिर में लगता है चावल के पापड़ का भोग, जानें क्या है इसकी पौराणिक मान्यता
Uttarakhand Temple नेपाल सीमा से लगे चमदेवल में स्थिति प्रसिद्ध चमू देवता मंदिर में चावल के पापड़ का भोग लगता है। मालू और साल के पत्तों से पापड़ तैयार किया जाता है। इन दिनों क्षेत्र की महिलाएं पवित्रता के साथ पापड़ तैयार करने में जुटी हुई हैं।
गौरी शंकर पंत, लोहाघाट (चंपावत) : नेपाल सीमा से लगे चमदेवल में स्थिति प्रसिद्ध चमू देवता मंदिर में चावल के पापड़ का भोग लगता है। मालू और साल के पत्तों से पापड़ तैयार किया जाता है। इन दिनों क्षेत्र की महिलाएं पवित्रता के साथ पापड़ तैयार करने में जुटी हुई हैं।
क्षेत्र के लोग पहली नवरात्र को गंगा स्नान करने के बाद मालू और साल के पत्तों को घर में लाते हैं। मेला शुरू होने से एक दिन पूर्व स्नान व व्रत धारण कर तांबे की पतेली में टीका लगाकर भेंट अक्षत डालकर दीया जलाते हैं। भिगोए गए चावलों को बारीक पीसकर मालू और साल के पत्तों पर लेप लगाकर आग में रखी पतेली के भाप में पकाया जाता है।
उसके बाद पके हुए मालू और साल के पत्तों को निकाल कर जमीन में पराल (धान की घास) बिछा कर उसमें फैला दिया जाता है। सूखने के बाद त्योहार के दिन तला जाता है और चमू देवता को भोग लगाने के बाद प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। अष्टमी पर्व से पापड़ बनाने का कार्य पूरे पवित्रता के साथ शुरू हो गया है। महिलाएं शुद्धता एवं पवित्रता के साथ प्रसाद तैयार कर रही हैं। पुष्पा देवी, पूजा कलौनी, निर्मला देवी, तुलसी देवी, जानकी देवी, वमला देवी, गंगा देवी, हेमा देवी, गीता देवी, भावना, हीरा, मनीषा आदि ने बताया कि हर घर में प्रसाद तैयार किया जा रहा है।
लहसुन, प्याज से भी बनानी पड़ती है दूरी
इस दौरान पापड़ बनाने के बाद घर में शुद्धता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। देवी-देवताओं का पूजन करने तक घर में मांस-मदिरा तो दूर लहसुन, प्याज का सेवन करना भी वर्जित है।
मेहमान बिना प्रसाद लिए ही चला जाए, यह संभव नहीं
चैतोला मेला मेहमानों की खातिरदारी के लिए भी जाना जाता है। मेले की विशेषता रही है कि दूर दराज क्षेत्रों से आने वाले लोगों को भूखा नहीं रखा जाता। उन्हें पवित्रता के साथ खाना खिलाकर प्रसाद अवश्य दिया जाता है।
इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान किया था
देव भूमि में यत्र-तत्र स्थित मन्दिर व देवालय अपनी विशिष्ट मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। गुमदेश क्षेत्र के चमदेवल में स्थित चमू देवता मन्दिर भी प्रगाढ़ आस्था का केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण अज्ञातवास के दौरान यहां पहुंचे पांडवों ने किया था। मंदिर के अन्दर शिवलिंग व दीवारों पर विराजमान पांडव कालीन मूर्तियां इसका प्रमाण हैं।
पापड़ के प्रसाद के पीछे भी है पौराणिक मान्यता
पंडित मदन कलौनी बताते हैं कि प्राचीन समय में गुमदेश क्षेत्र में बकासुर नामक दैत्य ने आतंक मचाया था। वह क्षेत्र में प्रत्येक दिन एक व्यक्ति की बलि लेता था। एक दिन कोकिला नाम की वृद्धा जिसका केवल एक पौत्र था उसके बलि की बारी आई तो वृद्धा निराश हो गई। निराश कोकिला ने चमू देवता की आराधना की और कहा, हे चमू देव यदि आपने मेरे पौत्र की रक्षा की तो मैं उस वक्त तुम्हारा काज लगाऊंगी जिस समय न घर में भोजन की व्यवस्था होगी और न जंगल में पेड़ों में पत्तियां होगी। वृद्धा की प्रार्थना पर चमू देवता ने अन्य देवताओं की सहायता से बकासुर राक्षस का वध करके लोगों का भय दूर कर दिया। तब से चैत्र मास की एकादशी को चैतोला मेले का आयोजन किया जाता है।
चैतोला मेले की तैयारियों को दिया अंतिम रूप
30 मार्च से चमदेवल के चमू देवता मंदिर में लगने वाले चैतोला मेले की तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया गया है। मेला समिति अध्यक्ष हरक सिंह भंडारी की अध्यक्षता और नर सिंह धौनी के संचालन में हुई बैठक में मेले को भव्य रूप देने का निर्णय लिया गया। वक्ताओं ने कहा कि सुरक्षा व्यवस्था, पेयजल, बिजली आदि के लिए प्रशासन को ज्ञापन दे दिया गया है। मेले के दौरान नशा पान पर प्रतिबंध रहेगा। भाजपा जिला उपाध्यक्ष मोहित पाठक ने बताया कि उन्होंने सीएम पुष्कर सिंह धामी से फोन से वार्ता कर मेले में आने का न्योता दिया है। इस दौरान पं. मदन कलौनी, खीमराज धौनी, राजेंद्र सिंह, गुमान सिंह, डुंगर सिंह आदि मौजूद रहे।