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'परंपरा की ध्वज वाहक हैं होली गायन की पुस्तकें'

संवाद सहयोगी चम्पावत चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रही चम्पावत को सांस्कृतिक विरासत का उ

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 08:00 AM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 08:00 AM (IST)
'परंपरा की ध्वज वाहक हैं होली गायन की पुस्तकें'
'परंपरा की ध्वज वाहक हैं होली गायन की पुस्तकें'

संवाद सहयोगी, चम्पावत : चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रही चम्पावत को सांस्कृतिक विरासत का उद्गम स्थल कहा जाता है। कुमाऊं की उत्पत्ति के साथ ही यहां पर्वो और संस्कृति की नींव पड़ी। भले ही वर्तमान में सांस्कृतिक समागम का कारवां थम गया हो, परंतु यहां लोक परंपराओं को आज भी संजीवनी मिल रही है। फाल्गुन के माह में ऋतुराज बसंत के आगमन के मौके पर होने वाली होली का अंदाज ही निराला है। मन में उल्लास और तरंग की नई ऊर्जा पैदा हो जाती है।

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काली कुमाऊं के लोगों के पोर-पोर में होली रची और बसी है। बड़े बुर्जुगों को जहां खड़ी होली के साथ ही सैकड़ों बैठकी होलियां कंठस्थ हैं। वहीं, नई पीढ़ी कैसेट और किताबों के जरिए यह परंपरा आगे बढ़ा रही है। इनमें होली पुस्तकों का अलग वजूद है। संकलनकर्ताओं ने इन किताबों में पुरानी होलियों को विशेष रुप से संग्रहित किया है। जिसमें श्रृंगार, भक्ति, वियोग, हंसी, ठिठोली, छेड़छाड़ के रसों से होलियां लबरेज हैं। होली पर्व के चलते इन किताबों की बिक्री का भी ग्राफ इन दिनों बढ़ गया है। रंगकर्मी रमेश पुनेठा द्वारा संग्रहित 'फागुन की फुहार' में 85 खड़ी होलियां हैं और इसका मूल्य 30 रुपए है। शिवराज भंडारी और मदन सिंह अध्यापक द्वारा रचित 'खड़ी होली संग्रह' भी खूब बिक रहा है। इसमें 40 होलियां हैं और इसका मूल्य 12 रुपए है। इसके अलावा 'छायी रै तलमल देश' नामक पुस्तक के रचयिता कुलदीप उप्रेती हैं। 150 रुपए की इस किताब में सैकड़ों वेदांती होलियों के साथ ही बैठकी होली का भी संग्रह है। इसके अलावा विनोद बंसल द्वारा लिखित होली सरगम, रमेश पुनेठा की बैठकी होली की किताबें भी खूब बिक रही हैं। बहरहाल, चम्पावत जनपद में होली की विरासत को आगे बढ़ाने में पुस्तकों का योगदान भी कम नहीं है। ==========

आधा दर्जन पुस्तकों की खासी डिमांड

वर्तमान में चम्पावत में आधा दर्जन पुस्तकों की खासी डिमांड है। 'राजा बलि के द्वार मची होली' पुस्तक का संकलन मदन सिंह महर ने किया है। जिसमें लाल सिंह महर और राजेंद्र गहतोड़ी सहयोगी हैं। इस पुस्तक में 81 खड़ी होली संग्रहित हैं। इसका मूल्य 40 रुपए है। इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें होलियों को प्रतिदिन गायन के हिसाब से संग्रहित किया गया है।


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