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Shardiya Navratri 2022: सबकी मनोकामना पूर्ण करती है मां पूर्णागिरि, यहीं गिरी थी माता सती की नाभि

Shardiya Navratri 2022 टनकपुर से 24 किलोमीटर दूर मां पूर्णागिरि का धाम (Purnagiri dham) स्थित है। धाम का पहला पड़ाव ठुलीगाड़ है। टनकपुर पहुंचने के बाद श्रद्धालु पवित्र शारदा नदी में स्नान कर दर्शनों को जाते हैं।

By JagranEdited By: Rajesh VermaPublished: Thu, 29 Sep 2022 09:42 PM (IST)Updated: Thu, 29 Sep 2022 09:42 PM (IST)
Shardiya Navratri 2022: सबकी मनोकामना पूर्ण करती है मां पूर्णागिरि, यहीं गिरी थी माता सती की नाभि
देश के कोने-कोने से मां के भक्तों यहां पहुंचकर उनके दर्शन करते हैं और वांछित फल पाते हैं l

जागरण संवाददाता, टनकपुर। अन्नपूर्णा की चोटी पर मां पूर्णागिरी मंदिर का पवित्र धाम है। शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर यहां मेले सा माहौल रहता है। दूरदराज से आकर मां पूर्णागिरि के भक्त यहां पूजा-अर्चना करते हैं। चैत्र नवरात्र पर उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला तीन माह तक यहीं लगता है। देश के कोने-कोने से मां के भक्तों यहां पहुंचकर उनके दर्शन करते हैं और वांछित फल पाते हैं l

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मंदिर पहुंचने का मार्ग

टनकपुर से 24 किलोमीटर दूर मां पूर्णागिरि का धाम स्थित है। धाम का पहला पड़ाव ठुलीगाड़ है। टनकपुर पहुंचने के बाद श्रद्धालु पवित्र शारदा नदी में स्नान कर दर्शनों को जाते हैं। ठुलीगाड़ होते हुए वह दूसरे पड़ाव भैरव मंदिर पहुंचते हैं। इन दोनों स्थान पर विभिन्न धर्म परायण लोगों द्वारा भंडारा लगाया जाता है। यहां से तीन किमी पैदल मार्ग से मां के धाम पर पहुंचा जा सकता है।

यह भी पढ़ें : Navratri 2022: पूर्णागिरी धाम में पूरी होती है हर मनोकामना, सौंदर्य व अध्यात्म के मिलन के साथ ऐसे बना यह मंदिर 

बाबा भैरवनाथ है मां के द्वारपाल

शक्तिपीठ में पहुंचने से पूर्व भैरव मंदिर पर बाबा भैरवनाथ का वास है। वह उनके द्वारपाल के तौर पर खड़े है। उनके दर्शन के बाद ही मां के दर्शनों की अनुमति मिलती है। जहां वर्षभर धूनी जली रहती है। बाबा भैरव को हनुमान का सारथी व शिव के काल का रूप भी माना जाता है।

इतिहास भी जानें

अन्नपूर्णा चोटी पर मां पूर्णागिरि का धाम बसा हुआ है। मां के शक्तिपीठों में भी यह पीठ है। माता सती की यहां नाभि गिरी है। 1632 में श्री चंद तिवारी ने यहां पर मंदिर की स्थापना की और माता की विधिवत पूजा-अर्चना शुरू की। मान्यता है कि सच्चे मन से थामने जो भी अपनी मन्नत मानता है उसकी मुराद पूरी होती है। मान्यता है कि जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर स्वयं को चला डाला तो भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे तो अन्नपूर्णा चोटी पर जहां नाभि गिरी। उस स्थल को पूर्णागिरी शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली।

पूर्णागिरि धाम को नवरात्र में विशेष प्रकार से सजाया जाता है भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर समिति वह प्रशासन इस पर विशेष ध्यान देता है सच्चे मन से पूजा करने पर भक्तों की मन्नत पूरी होती है।

- भैरव पांडे, पुजारी


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