सीने में धंसे छर्रे से अधिक चुभती है सरकार की वादाखिलाफी
कारगिल की जंग में चंपावत के दान सिंह मेहता ने अपने अदम्य साहस से दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। सरकारी वादाखिलाफी की टीस उन्हें सीने में धंसे छर्रे से कहीं अधिक टीस देती है।
चंपावत, [दिनेश अवस्थी]: कारगिल की जंग में चंपावत के दान सिंह मेहता ने अपने अदम्य साहस से दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। सीने पर गोलियां खाकर भी छह दुश्मनों को ढेर किया था। कारगिल युद्ध में वह शरीर से अक्षम हो गए। छह माह से भी अधिक समय तक इलाज चला। नौ एमएम का छर्रा आज भी उनके सीने में है जो कभी-कभी दर्द देता है, लेकिन सरकारी वादाखिलाफी की टीस उन्हें सीने में धंसे छर्रे से कहीं अधिक टीस देती है।
परिवार के भरण पोषण के लिए सरकार ने पेट्रोल पंप देने की घोषणा की थी जो आज तक पूरी नहीं हो पाई। चंपावत बाजार में वह फुटवियर की दुकान चलाकर जीविका चला रहे हैं। उन पर तीन बेटियों व एक बेटे के परवरिश की जिम्मेदारी हैं।
मेहता बताते हैं कि जब सेवा से मुक्त करते वक्त रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने भी भरोसा दिलाया था कि बेटियों की परवरिश में मदद दी जाएगी। परिवार चलाने को पेट्रोल पंप का आवंटन होगा। पेट्रोल पंप तो मिला नहीं। अलबत्ता बेटियों की शिक्षा के नाम पर दो लाख और एक बेटी की शादी के लिए उत्तराखंड सरकार ने दो लाख रुपये जरूर दिए। अब दो बेटियों की शादी की चिंता उन्हें सता रही है।
टारगेट थे 40, मलाल है छह ही दुश्मन क्यों मारे
कारगिल युद्ध का वह मंजर आज भी दान सिंह की आंखों में जीवंत हैं। उन्हें मलाल है कि 40 पाक सैनिक उनके सामने थे, लेकिन छह को ही ढेर कर पाए।
उस दिन का मंजर बयां करते हुए दान सिंह कहते हैं कि द्रास के सामने तुरतुक सेक्टर में करीब 150 मीटर की ऊंचाई पर 40 दुश्मनोंने कब्जा कर रखा था। 12 जाट रेजीमेंट को पाक सैनिकों के कब्जे वाली जगह को मुक्त कराने का आदेश मिला।
इस पर उनके समेत 12 जवानों की टुकड़ी के कमान अधिकारी समीर बिसारिया व मेजर राजीव शर्मा के नेतृत्व में 22 जुलाई 1999 को तुरतुक सेक्टर के बेस कैंप से आगे बढ़ी।
लगातार तीन दिन व रात दुर्गम रास्तों पर चल कर सैनिक 25 जुलाई को द्रास के सामने करीब 21 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचे। इस युद्ध में दो सैनिक शहीद हो गए। दान सिंह मेहता व उनके दो साथी बुरी तरह जख्मी हो गए। मेहता के सीने व पैर में गोली लगी। अगले दिन 26 जुलाई को तीनों घायलों को जम्मू-कश्मीर के कमांडो हास्पिटल में भर्ती कराया गया। तीन माह तक इलाज चला।
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