भारत व नेपाल की साझा संस्कृति है नखरूघाट मेला
संवाद सहयोगी, लोहाघाट : नेपाल सीमा से लगे मंडल के अंतर्गत काली नदी के किनारे लेटी व पासम क
संवाद सहयोगी, लोहाघाट : नेपाल सीमा से लगे मंडल के अंतर्गत काली नदी के किनारे लेटी व पासम के बीच लगने वाला नखरूघाट मेला भारत व नेपाल की साझी सांस्कृतिक विरासत का नमूना है। यह मेला सदियों से भारत व नेपाल की मित्रता को मजबूती प्रदान करने के साथ व्यापारिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। मेले में किमतोली पुलिस एवं एसएसबी के जवानों द्वारा प्रतिवर्ष मेले के शांतिपूर्वक संचालन में सहयोग दिया जाता है।
चंपावत जिले के पूर्वी भाग में भारत व नेपाल को बांटने वाली काली नदी के किनारे पासम व डुंगरालेटी ग्राम सभाओं के बीच सेरा नामक स्थान नागार्जुन देवता का मूल स्थान माना जाता है। यह स्थान नखरूघाट के नाम से प्रसिद्ध है। काली नदी में कालीताल देव का निवास स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में नदी में नहाते समय कालीताल देव का धामी नदी में समा गया। डूब कर मरा हुआ जान अन्य लोग धामी को छोड़कर घर लौट आए। परिजनों ने उसका क्रिया कर्म भी शुरू कर दिया। सात दिन बाद नदी में डूबा धामी अचानक अपने घर सल्टा पहुंच गया। उसने परिजनों एवं अन्य लोगों को बताया कि काली नदी के नीचे सोने का भव्य मंदिर है। जहां पर्याप्त सेवक विद्यमान हैं, वहां खाने पीने की कोई कमी नहीं है। धामी की यह बात सुनकर श्रद्धालुओं की श्रद्धा अगाढ़ हो गई। तब से यहां प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। तीन दिनों तक चलने वाले मेले के दौरान सल्टा गांव के मुख्य धामी को श्रद्धालुओं द्वारा लेटी तक कंधे में ले जाया जाता है जहां से वह पहले से ही तैयार रथ में आरूढ़ होकर सुंगरखाल होते हुए सेरा को प्रस्थान करते हैं। इस आयोजन में बाहर गांवों के लोग सहभागिता करते हैं। एकादशी के दिन सल्टा, बगोटी, जमर्सो, लेटी, पासम आदि गांवों के लोग ढ़ोल नगाड़ों के साथ हुड़का, झोड़ा, ढुसका आदि का गायन करते हैं। नखरूघाट मेले को क्षेत्र के लोग होली व दीपावली से भी अधिक महत्व देते हैं। इस मेले में नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रतिभाग करते हैं। दोनों देशों के लोग एक दूसरे की दुकानों से जमकर खरीददारी करते हैं।
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क्षेत्र के लोग तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे
लोहाघाट : नेपाल सीमा से लगे महाकाली नदी तट पर लगने वाले नखॅरूघाट मेले की तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया जा रहा है। मेले का उद्घाटन 22 नवंबर को रात्रि 8 बजे विभिन्न गांवों के देव डांगरों द्वारा मंदिर की परिक्रमा कर किया जाएगा। मेले की तैयारियों को लेकर डॉ. सतीश पांडेय, अनिल पांडेय, देव सिंह, कमल बोहरा विक्रम सिंह, पुष्कर सिंह, बहादुर चंद सहित क्षेत्र के लोग तैयारियों में जुटे हुए है। मेले में भारत व नेपाल के हजारों श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। मेले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे। मेले को लेकर क्षेत्र के लोगों में खासा उत्साह बना हुआ है।