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ऋषेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ पांच दिवसीय देवीधार महोत्सव शुरू

कोरोना महामारी के चलते सांकेतिक पूजा-अर्चना के साथ मंगलवार को देवीधार महोत्सव का शुभारंभ हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Jul 2021 10:15 PM (IST)Updated: Tue, 20 Jul 2021 10:15 PM (IST)
ऋषेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ पांच दिवसीय देवीधार महोत्सव शुरू
ऋषेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ पांच दिवसीय देवीधार महोत्सव शुरू

संवाद सहयोगी, लोहाघाट : कोरोना महामारी के चलते सांकेतिक पूजा-अर्चना के साथ मंगलवार को पांच दिवसीय देवीधार महोत्सव का शुभारंभ हो गया है। समिति ने महोत्सव के दौरान शैक्षिक, सास्कृतिक, खेलकूद प्रतियोगिता और व्यापारिक दुकानें खोलने पर प्रतिबंध लगाया है। परंपरा का निर्वहन करने के लिए मंदिर में पूजा-अर्चना करने के साथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को कोरोना महामारी के प्रति जागरूक किया जाएगा। ऋषेश्वर महादेव मंदिर में पंडित बृजेश पुनेठा ने विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के साथ महोत्सव का शुभारंभ कराया। बाद देवीधार में देवीधार स्थित मा भगवती मंदिर, मां महाकाली और हनुमान मंदिर में पूजा अर्चना कर क्षेत्र की खुशहाली और विश्व से कोरोना महामारी के खात्मे के लिए मां से प्रार्थना की। महोत्सव समिति अध्यक्ष जीवन सिंह ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते सांकेतिक रूप से महोत्सव को मनाया जाएगा। प्रतिदिन मंदिर में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन कर पूजा-अर्चना की जाएगी। इस दौरान महोत्सव समिति के सचिव प्रकाश राय, महंत बहादुर गिरी, बाबा भुवन गिरी आदि मौजूद रहे।

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========= हर्षोल्लास के साथ मनाया देवशयनी एकादशी पर्व

लोहाघाट : नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में मंगलवार को देवशयनी एकादशी पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। महिलाओं व पुरुषों ने स्नान के बाद पूजा अर्चना व्रत कर घरों में तुलसी लगाई गई। मान्यता के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का शयन काल शुरू हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चातुर्मास के लिए निद्रा पर चले जाते हैं, इसलिए इस दिन से लेकर चार माह तक कोई शुभ कार्य नहीं होते है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं में देवशयनी एकादशी व्रत सबसे श्रेष्ठ एकादशी मानी जाती है। इस व्रत से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है। देर शाम मंदिरों व घरों में पूजा अर्चना के साथ भजन कीर्तन कर व्रत का पारायण किया। बाद लोगों को प्रसाद वितरित किया।


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