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30 हजार हेक्टेयर रबी की फसल पर संकट के बादल

बारिश न होने से जिले में अब तक 30 हजार हेक्टेयर में बोई जा चुकी है। बारिश न होने से अब इस फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 11:11 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 06:20 AM (IST)
30 हजार हेक्टेयर रबी की फसल पर संकट के बादल
30 हजार हेक्टेयर रबी की फसल पर संकट के बादल

संवाद सहयोगी, चम्पावत : बारिश न होने से जिले में अब तक 30 हजार हेक्टेयर में बोई जा चुकी रबी की फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। अब तक पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। खेतों की नमी सूख रही है, जिसको लेकर किसान परेशान हैं। काश्तकारों को आलू की बुवाई के लिए खेत तैयार करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

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इस बार चम्पावत, लोहाघाट, बाराकोट, पाटी ब्लाकों में लगभग 33 फीसदी काश्तकारों ने गेहूं, जौं, मटर, सरसों, लाही, मसूर आदि की बुआई कर दी है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कुछ जगह अभी तक बारिश के इंतजार में बुआई नहीं हो पाई है। जहां रबी फसलों की बुआई हो चुकी है वहां खेतों में नमी न होने के कारण फसल उग नहीं पा रही है। जहां फसल उग गई है वहां उसकी ग्रोथ रूकने के साथ पौधों में पीलापन शुरू हो गया है। हालांकि अभी काश्तकारों के पास दिसंबर पहले सप्ताह तक रबी की फसल बुवाई के लिए पर्याप्त समय है। कृषि विभाग ने इस बार जिले में रबी फसलों की बुआई के लिए 62 हजार हेक्टेयर परिक्षेत्र का लक्ष्य रखा है। जिसमें 81 हजार हेक्टेयर गेहूं, 15 हजार हेक्टेयर मसूर, 900 हेक्टेयर जौं, 80 हेक्टेयर चना, 30 हेक्टेयर मटर और 800 हेक्टेयर सरसों तथा लाही बोई जानी है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार नवंबर पहले पखवाड़े तक लगभग 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुआई हो चुकी है। खेतों में नमी न होने से अब काश्तकारों ने फसल बुआई का काम बंद कर दिया है। एक पखवाड़े तक बारिश नहीं हुई तो फिर जिले में रबी फसलों की बुआई समय पर नहीं हो पाएगी जिससे काश्तकारों को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। मुख्य कृषि अधिकारी राजेंद्र उप्रेती ने बताया कि अभी रबी फसलों की बुआई के लिए पर्याप्त समय है। जल्द बारिश होने पर बोई गई फसल की ग्रोथ भी अच्छी होगी।

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वर्जन

गेहूं के लिए पर्याप्त सिंचाई की जरूरत होती है। पखवाड़े के भीतर बारिश हुई तो यह रबी फसलों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। बारिश में देरी होने पर काफी नुकसान हो सकता है।

-डॉ. एमपी सिंह, फसल सुरक्षा वैज्ञानिक


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