बरसात के मौसम में पशुओं का रखें ध्यान
दीपक सिंह बोहरा, चम्पावत जनपद में पशुपालन अधिकांश लोगों की आय का स्रोत है। इसलिए पशु
दीपक सिंह बोहरा, चम्पावत
जनपद में पशुपालन अधिकांश लोगों की आय का स्रोत है। इसलिए पशुओं का हमेशा स्वस्थ रहना जरुरी है। लेकिन जब बरसात का मौसम आता है तो वह अपने साथ कई प्रकार की बीमारियां भी लेकर आता है। जो पशुओं के लिए खतरनाक है। कई पशु पालकों को इन बीमारियों की जानकारी न होने से वे अपने दुधारु पशुओं को खो देते हैं। दूर दराज के क्षेत्रों में पशुओं को सही इलाज भी नहीं मिल पाता है।
बरसात के मौसम में कई बीमारियों के कारण पशुओं की दुग्ध क्षमता प्रभावित हो जाती है और कई बार तो सही उपचार न मिलने पर पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में दूर दराज के गांवों में पशुओं को तो दूर इंसानों को भी समय पर उपचार नहीं मिल पाता है। किसी बीमार व्यक्ति को तो उपचार के लिए डोली में या अन्य साधनों से चिकित्सालय पहुंचाया जा सकता है। लेकिन पशुओं के साथ ऐसा नहीं है और हर क्षेत्र में पशु चिकित्सकों का पहुंचना भी नहीं हो पाता है। पशु पालकों को बरसात में दुधारु पशुओं में होने वाली बीमारी की जानकारी नहीं होती है। जिससे पशु पालकों को पशुओं के उपचार करने सहित कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन सही जानकारी व कुछ घरेलू उपायों से पशुओं को बीमारी से बचाया जा सकता है। बरसात में होने वाली बीमारियां व घरेलू उपचार
पशु चिकित्साधिकारी डॉ. जेपी यादव ने बरसात में पशुओं को होने वाली बीमारी के बारे में बताया तथा उसके घरेलू उपचार व बरती जाने वाली सावधानियों की जानकारी दी। जिससे दूर दराज के पशु पालक अपने दुधारु पशुओं को बीमारी से बचा सकते हैं। 1. अफारा -
यह बीमारी अधिकांश दुधारु पशुओं में होती है। इस बीमारी में पशुओं का पेट फूल जाता है और पशुओं की मृत्यु हो जाती है।
सावधानी - पशुओं को ज्यादा हरा चारा न दें इससे पेट फूल जाता है। सूखा व हरा चारा मिला कर देना चाहिए।
उपचार - पशुओं का पेट फूलने पर 50-50 ग्राम काला नमक, अजवाइन, हींग का घोल बनाकर पशुओं को देना चाहिए।
= इस बीमारी से कुछ समय पूर्व सिमल्टा के ग्राम पचनई में एक भैस की मृत्यु हो चुकी है। 2. पतले दस्त -
इस बीमारी में पशुओं को पतले दस्त लग जाते हैं और कई बार दस्त के साथ कीड़े भी निकलते हैं।
उपचार - पेट कीड़े मारने की दवा चिकित्सक की की सलाह पर देनी चाहिए।
3. इफीमेरल फीवर -
यह बैटीरिया जनित रोग है। इस बीमारी में पशुओं को तेज बुखार आ जाता है, पशु लंगड़ाने लगते हैं और चारा खाना बंद कर देते हैं।
उपचार - सूजन व बुखार घटाने की दवा चिकित्सक की सलाह पर देनी चाहिए। 4. पीपीआर -
पीपीआर को गोट प्लेग भी कहते हैं। यह वायरस जनित रोग है। यह बीमारी बकरियों में होती है। बरसात में यह तेजी से फैलती है। इसमें बकरियों की नाक से पानी निकलता है व दस्त लग जाते हैं।
उपचार - पीपीआर का टीका लगाना चाहिए। गंभीर स्थिति में तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। 5. थनैला -
ठीक ढ़ंग से साफ सफाई न होने से यह रोग दुधारु पशुओं के थनों में हो जाता है। यह बैक्टीरिया जनित रोग है। इसमें पशुओं के थन से फटा हुआ दूध निकलता है। थन गरम व मोटे हो जोते हैं और गंभीर स्थिति में पशु की दुग्ध क्षमता भी समाप्त हो जाती है।
सावधानियां - पशुओं को साफ सुथरे स्थान पर रखें। पशुओं के थनों को लाल दवा से धोना चाहिए, दूध निकालने के बाद पशुओं को 15 मिनट तक बैठने नहीं देना चाहिए।
उपचार - चिकित्सक न मिलने की स्थिति में थनों का पूरा दूध दिन में तीन बार निकाल देना चाहिए। थनों में बर्फ रगड़नी चाहिए, तीन दिनों तक सुबह शाम थनों में पेंडिस्ट्रीन ट्यूब लगानी चाहिए। आराम न होने पर चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। वर्जन -
समय-समय पर चिकित्सा शिविरों के माध्यम से ग्रामीणों को इन रोगों की जानकारी दी जाती है और दवा वितरित की जाती है। लेकिन फिर भी कम ही लोगों को इन बीमारियों की जानकारी है। बरसात में यह रोग तेजी से फैलते हैं जिस कारण कई बार पशु पालकों के दुधारु पशुओं की मृत्यु हो जाती है। - डॉ. जेपी यादव, पशु चिकित्साधिकारी चम्पावत।