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महिलाएं करती हैं भगवान फ्यूंला नारायण का श्रृंगार

रणजीत सिंह रावत, जोशीमठ चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से लगभग दस हजार फीट की ऊ

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 03:01 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 03:01 AM (IST)
महिलाएं करती हैं भगवान फ्यूंला नारायण का श्रृंगार
महिलाएं करती हैं भगवान फ्यूंला नारायण का श्रृंगार

रणजीत सिंह रावत, जोशीमठ

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चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से लगभग दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान फ्यूंला नारायण का कपाट आज खोले जाएंगे। इसके लिए सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं। इस पौराणिक मंदिर में ठाकुर जाति का पुजारी होता है और यहां उगने वाले विशेष फूल 'फ्यूंला' की वजह से इससे फ्यूंला नारायण कहा जाता है। दक्षिण शैली में बने इस पौराणिक मंदिर की खासियत यह है कि यहां पुजारी के बजाय, महिला भगवान नारायण का फूलों से श्रृंगार करती है।

मंदिर के कपाट खुलने पर भगवान नारायण का स्नान के बाद फ्यूंला के फूलों से श्रृंगार किया जाता है। इससे पूर्व ग्रामीण अपनी गायों को लेकर फ्यूंला नारायण पहुंचते हैं और इन्हीं गायों के दूध व मक्खन का भगवान को भोग लगाया जाता है। खास बात यह है कि पुजारी, भगवान का श्रृंगार करने वाली महिला और गाय कपाट बंद होने तक फ्यूंला नारायण मंदिर में रहते हैं। भगवान को हर दिन तीनों पहर भोग लगता है। इस बार भगवान नारायण का श्रृंगार करने वाली गोदांबरी देवी कहती हैं कि यह अधिकार महिलाओं को पीढि़यों से मिला हुआ है।

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सिर्फ डेढ़ माह खुला रहता है मंदिर

फ्यूंला नारायण मंदिर के पुजारी रघुबीर ¨सह बताते हैं कि परंपरा के अनुसार मंदिर के कपाट श्रावण संक्रांति को खुलते हैं व डेढ़ माह बाद नंदा अष्टमी को बंद कर दिए जाते हैं।

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भर्की के भूम्याल देवता करते हैं यात्रा की अगवानी

क्षेत्र के भेटा, भर्की, गवाणा व अरोशी सहित उर्गम घाटी के दर्जनों गांवों के लोग मंदिर में हक-हकूकधारीहैं। कपाट खुलने पर भर्की के पंचनाम देवता (भूम्याल) मंदिर से पुजारी सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ फ्यूंला नारायण मंदिर पहुंचते हैं। जबकि भर्की के भूम्याल देवता यात्रा की अगवानी करते हैं। उर्गम सड़क मार्ग से फ्यूंला नारायण मंदिर चार किमी पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है।


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