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सूख चुके वेदनी कुंड में फिर लौटी बहार, जानिए इस खूबसूरत जगह की खासियत

चमोली जिले में श्री नंदा देवी राजजात पथ पर वाण गांव से 13 किमी दूर वेदनी बुग्याल में स्थित वेदनी कुंड में फिर से बहार लौट आई। पहले यह कुंड सूख चुका था अब पानी से भरा है।

By BhanuEdited By: Published: Thu, 30 May 2019 10:51 AM (IST)Updated: Thu, 30 May 2019 08:32 PM (IST)
सूख चुके वेदनी कुंड में फिर लौटी बहार, जानिए इस खूबसूरत जगह की खासियत
सूख चुके वेदनी कुंड में फिर लौटी बहार, जानिए इस खूबसूरत जगह की खासियत

चमोली, देवेंद्र रावत। इस वर्ष शीतकाल के दौरान हुई भारी बर्फबारी हिमालय में स्थित ताल-बुग्यालों के लिए सौगात लेकर आई है। इसकी बानगी पेश कर रहा है चमोली जिले में श्री नंदा देवी राजजात पथ पर वाण गांव से 13 किमी दूर वेदनी बुग्याल (मखमली घास का मैदान) में स्थित वेदनी कुंड। इन दिनों पानी से लबालब भरा यह कुंड (ताल) सम्मोहन बिखेर रहा है। बीते वर्ष यह पूरी तरह सूख गया था। 

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समुद्रतल से 13500 फीट की ऊंचाई पर 15 मीटर व्यास में फैले ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व वाले वेदनी कुंड (ताल) पर वर्षों से पानी की कमी के चलते खतरा मंडरा रहा था। बीते वर्ष तो कुंड का पानी पूरी तरह सूख गया। इससे पर्यावरण प्रेमियों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा गईं। 

विशेषज्ञ वेदनी कुंड के जलविहीन होने का कारण ग्लोबल वार्मिंग को मान रहे थे। बावजूद इसके सरकार एवं वन विभाग के स्तर पर इस ऐसा कुछ इंतजाम नहीं किया गया, जिससे इस कुंड को पुनर्जीवन मिले। स्थानीय लोगों की मानें तो बीते वर्षों में भूस्खलन के चलते पानी के लगातार रिसने से भी कुंड का आकार सिकुड़ता चला गया, लेकिन, पिछले दिनों जब पर्यटक इस ट्रैक पर गए तो पानी से लबालब भरे वेदनी कुंड को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। 

पिछले सप्ताह ही वेदनी से लौटे चमोली जिले के किरुली गांव के रहने वाले ट्रैकर संजय चौहान बताते हैं कि इस बार वेदनी कुंड को लबालब देख एक सुखद एहसास हो रहा है। वह कहते हैं कि वन विभाग की ओर से इस कुंड की सुध नहीं ली गई, लेकिन प्रकृति ने खुद ही रक्षा की है। वेदनी बुग्याल में पर्यटकों को पीने का पानी भी इसी कुंड से निकलने वाली जलधारा से मिल रहा है। 

वेदनी में होती है राजजात की प्रथम पूजा 

वेदनी बुग्याल नंदा देवी व त्रिशूली पर्वत शृंखलाओं के मध्य स्थित खूबसूरत वेदनी कुंड का चमोली जिले के इतिहास में विशेष स्थान है। यह कुंड यहां की धाॢमक मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है। प्रत्येक 12 साल में आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी राजजात के दौरान वेदनी कुंड में स्नान करने के बाद ही यात्री होमकुंड का रुख करते हैं। 

यहीं राजजात की प्रथम पूजा भी होती है। जबकि, प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी लोकजात का भी वेदनी कुंड में ही समापन होता है। इस कुंड में स्नान करने के बाद मां नंदा को कैलास के लिए विदा किया जाता है। 

बर्फबारी से लौटी रौनक 

बदरीनाथ वन प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर के अनुसार, विगत वर्ष चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कम बर्फबारी हुई थी, जिसका असर वेदनी कुंड के जलस्तर पर भी पड़ा। पहले पर्याप्त बर्फबारी होने के कारण वेदनी कुंड गर्मियों में भी पानी से लबालब रहता था। इस साल ठीक-ठाक बर्फबारी हुई है, इससे वेदनी कुंड फिर अपने प्राकृतिक रूप में आ गया है।' 

कुंड का सूखना जैव विविधता के लिए खतरनाक 

श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. हेमंत बिष्ट के मुताबिक, बर्फबारी में कमी और पर्यावरण असंतुलन का ही कारण है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में ताल सूख रहे हैं। वेदनी कुंड भी इससे अछूता नहीं है। पहाडिय़ों से आने वाले पानी के साथ ही भूमिगत स्रोत से इस कुंड में जलापूर्ति होती थी। इस पानी से जंगली जानवरों के साथ ही चारागाह में रहने वाले पालतू पशु भी प्यास बुझाते थे। जाहिर है कुंड का सूखना बुग्याली जैव विविधता के लिए खतरनाक हो सकता है। 

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