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ये शिक्षक हर स्वतंत्रता दिवस पर लेते हैं बेटियों को गोद, उठाते हैं शिक्षा का खर्च

चमोली जिले के शिक्षक धन सिंह घारिया हर स्वतंत्रता दिवस पर बेटियों को गोद लेकर उनकी शिक्षा का पूरा खर्चा उठाते है। उनकी ये पहल सभी के लिए एक मिसाल पेश करती है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 02:51 PM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 03:52 PM (IST)
ये शिक्षक हर स्वतंत्रता दिवस पर लेते हैं बेटियों को गोद, उठाते हैं शिक्षा का खर्च
ये शिक्षक हर स्वतंत्रता दिवस पर लेते हैं बेटियों को गोद, उठाते हैं शिक्षा का खर्च

गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: आइए! हम आपका परिचय चमोली जिले के एक ऐसे शिक्षक से कराएं, जिनके लिए स्वतंत्रता दिवस महज रस्मअदायगी का दिन नहीं है। वह इस दिन उन मेधावी बालिकाओं की शिक्षा की जिम्मेदारी उठाने का संकल्प लेते हैं, जिनके परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। 2014 से शुरू किए गए इस अभियान के तहत वर्तमान में वह 150 बालिकाओं की इंटर तक की शिक्षा का खर्चा उठा रहे हैं। इस वर्ष के लिए भी उन्होंने गरीब मेधावी छात्राओं का चयन किया है। 

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इस शिक्षक का नाम है धन सिंह घरिया (43 वर्ष)। मूलरूप से चमोली जिले के ग्राम सेंटुणा निवासी घरिया वर्तमान में पटेलनगर (देहरादून) में रह रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस पर उनके 'शिक्षा दान' का संकल्प के पीछे भी एक रोचक कहानी है। 2005 में घरिया की नियुक्ति प्राथमिक विद्यालय किमाणा (ऊखीमठ) में हुई। इसी वर्ष उन्हें एलटी शिक्षक के रूप में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नैनीताल में भी तैनाती मिली। 15 अगस्त का दिन था, लेकिन एक बच्चा ड्रेस भीग जाने के कारण स्वतंत्रता दिवस की प्रभातफेरी में नहीं आ पाया। जब घरिया को पता चला कि उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है और घर में पहनने के लिए दूसरे कपड़े भी नहीं हैं तो इस घटना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या यही आजादी है और इसी सोच ने उनकी दृष्टि बदल डाली।

घरिया ने उसी दिन संकल्प लिया कि ऐसे लोगों की मदद अवश्य करेंगे। इसी बीच 2006 में उनकी तैनाती राजकीय इंटर कॉलेज गोदली (चमोली) में राजनीति विज्ञान विषय के प्रवक्ता पद पर हो गई। पठन-पाठन के साथ वह क्षेत्र के गरीब व असहाय बच्चों की शिक्षा के लिए शासन-प्रशासन में पत्राचार भी करते रहे, मगर इसके कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए। बावजूद इसके वह अपने प्रयासों में जुटे रहे। 

2013 की बात है, केदारनाथ आपदा में ग्राम मसोली निवासी अंजलि के पिता की मौत हो गई। कुछ दिन बाद अंजलि की मां भी चल बसी, जिससे उसकी शिक्षा बाधित हो गई। घरिया से यह सब देखा नहीं गया और उन्होंने अंजलि के अन्य परिजनों से बात कर उसकी मदद करने की ठानी। परिजनों ने भी उनका समर्थन किया। 15 अगस्त 2014 को शिक्षक घरिया ने अंजलि की शिक्षा की जिम्मेदारी उठाई, जो वर्तमान में 12वीं कक्षा में अध्ययनरत है। 

अंजलि के साथ चार और बेटियां ली गोद 

इसी वर्ष शिक्षक ने मसोली निवासी वंदना (12वीं) व प्रांजलि (दसवीं), कलसीर निवासी जमुना (नवीं) और पाटी जखमाला निवासी सीमा (11वीं) की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी उठाई। वह इन बालिकाओं की स्कूल ड्रेस, कापी-किताब व फीस के अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकों का पूरा खर्चा उठाते हैं। घरिया बताते हैं कि पद्म विभूषण पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने भी 2014 में उन्हें इस नेक कार्य के लिए छह हजार रुपये की मदद दी। 

स्वतंत्रता का मतलब बचपन की खुशहाली 

घरिया कहते हैं कि देश ने आजादी के बाद हर क्षेत्र में तरक्की की है। लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी गरीबी व अशिक्षा का बोलबाला है। इसका सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है। उनका मानना है कि स्वतंत्रता दिवस को मनाने की सार्थकता तभी है, जब इस दिन लोग कम से कम एक बच्चे को पढ़ाने के लिए आगे आएं। बताते हैं कि उन्होंने जिन बच्चों की मदद की, उनमें अधिकांश निराश्रित हैं। 

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