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तबाह हुए इस गांव में मशरूम से बदली तकदीर, रोकी पलायन की राह

चमोली जिले के पुलना भ्यूंडार के लोगों ने सबके लिए मिसाल पेश की है। उन्होंने आपदा में तबाह हुए गांव को न सिर्फ बसाया। बल्कि मशरूम की खेती कर आर्थिकी को भी मजबूत किया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 29 Oct 2018 05:49 PM (IST)Updated: Tue, 30 Oct 2018 09:20 AM (IST)
तबाह हुए इस गांव में मशरूम से बदली तकदीर, रोकी पलायन की राह
तबाह हुए इस गांव में मशरूम से बदली तकदीर, रोकी पलायन की राह

जोशीमठ, [रणजीत सिंह रावत]: साल 2013 की भीषण आपदा में पूरी तरह से तबाह हुआ पुलना-भ्यूंडार गांव विकास की नर्इ इबारत लिख रहा है। यहां के लोगों ने मशरूम से न सिर्फ अपनी आर्थिकी को सुधारा है, बल्कि और लोगों के लिए एक मिसाल पेश की है कि अगर हौसले बुलंद हों तो किसी भी परिस्थिति से निपटा जा सकता है।   

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आपदा नहीं तोड़ पार्इ इनका हौसला 

चमोली जिले के आपदा प्रभावित गांव पुलना-भ्यूंडार के ग्रामीण मशरूम उत्पादन कर न सिर्फ अपनी आर्थिकी संवार रहे हैं, बल्कि उनकी इस पहल ने पलायन कर चुके ग्रामीणों को गांव वापस लौटने के लिए भी मजबूर कर दिया है। वर्ष 2013 की आपदा में यह गांव पूरी तरह तबाह हो गया था। तब ज्यादातर परिवारों ने गांव छोड़ने में ही भलाई समझी। लेकिन, चार परिवार ऐसे भी थे, जिन्होंने पलायन करने के बजाय गांव में रहकर ही मशरूम की खेती का रास्ता चुना। इसी का प्रतिफल है कि पलायन कर चुके कई परिवार आज गांव वापस लौटकर मशरूम की खेती में जुटे हुए हैं।

श्री हेमकुंड साहिब के निकट स्थित पुलना-भ्यूंडार गांव में आपदा से पहले 103 परिवार निवास करते थे। लेकिन, लक्ष्मण गंगा की बाढ़ में भ्यूंडार गांव जहां पूरी तरह तबाह हो गया, वहीं पुलना में भी अधिकतर मकान व खेती के नष्ट होने से ग्रामीण पलायन कर अन्यत्र चले गए। वर्ष 2014 तक 70 से अधिक परिवार पुलना छोड़कर जोशीमठ, देहरादून, गोपेश्वर समेत अन्य स्थानों पर बस गए थे। लेकिन, गांव के चार परिवार ऐसे भी थे, जिन्होंने पलायन करने के बजाय दोबारा गांव को बसाने की ठानी। 

उजड़े खेतों को संवारा, की मशरूम की खेती 

इन परिवारों ने सबसे पहले उजड़े हुए खेतों को संवारा और उनमें अन्न उपजाना शुरू किया। लेकिन, फसलों को जंगली जानवरों से बचाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में उन्होंने अपने टूटे-फूटे घरों में मशरूम की खेती करनी शुरू की। पहले ही चरण में मशरूम का अच्छा-खासा उत्पादन हुआ। इस मशरूम को बाजार के अलावा हेमकुंड आने वाले यात्रियों को भी बेचा गया। नतीजा एक साल में ही चारों परिवार मशरूम बेचकर पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गए। इनकी देखादेखी गांव से पलायन कर चुके कुछ परिवार भी वापस लौट आए और अब मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं।

एक साल में पांच क्विंटल मशरूम पैदा कर चुके ग्रामीण

पुलना-भ्यूंडार निवासी यशोदा देवी, संजय चौहान, पद्मेंद्र चौहान व रामकृष्ण चौहान बताते हैं कि ग्रामीण अब तक पांच क्विंटल मशरूम का उत्पादन कर चुके हैं। इसे 1500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बाजार में बेचा जा रहा है। यह मशरूम पूरी तरह जैविक है। यही वजह है कि यात्राकाल में हेमकुंड आने वाले यात्रियों ने भी इसे हाथोंहाथ लिया।

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