बदरीनाथ धाम में 15 नवंबर से होंगी पंच पूजाएं
कपाट बंद करने से पूर्व बदरीनाथ धाम में पंच पूजाओं की परंपरा है।
संवाद सूत्र, बदरीनाथ: कपाट बंद करने से पूर्व बदरीनाथ धाम में पंच पूजाओं की परंपरा है, जो 15 नवंबर से ही शुरू हो जाएंगी। धाम में विजयदशमी के मौके पर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की ओर से बामणी गांव के हक-हकूकधारियों को पगड़ी पहनाकर अगले वर्ष की बारी सौंपी गई।
पंच पूजाओं के क्रम में 15 नवंबर को गणेश पूजा और 16 नवंबर को आदि केदारेश्वर मंदिर के कपाट बंद किए जाएंगे। 17 नवंबर को खडक पुस्तक पूजा होगी और इसी दिन से मंदिर में वेद ऋचाओं की गूंज बंद हो जाएगी। 18 नवंबर को लक्ष्मी पूजन के बाद उन्हें गर्भगृह में भगवान नारायण के साथ विराजमान होने का निमंत्रण दिया जाएगा। 19 नवंबर को कपाट बंद होने से पूर्व देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान के बालसखा उद्धवजी को गर्भगृह से बाहर लाया जाएगा। 20 नवंबर को उद्धवजी व कुबेरजी की डोली और आदि शंकराचार्य की गद्दी यात्रा बदरीनाथ पांडुकेश्वर पहुंचेगी। यहां उद्धवजी व कुबेरजी को योग-ध्यान मंदिर में विराजमान किया जाएगा। जबकि, शंकराचार्य की गद्दी 21 नवंबर को रावल की अगुआई में जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में विराजमान होगी।
उधर, धाम में आयोजित एक कार्यक्रम में देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के डिप्टी सीईओ बीडी सिंह ने बामणी गांव के हक-हकूकधारी मेहता थोक, भंडारी थोक व कमदी थोक के बारीदार को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया। इन बारीदार को वर्ष 2021 में कपाट खुलने के बाद परंपराओं के निर्वहन की जिम्मेदारी सौंपी गई। बाद में सभी ने खाक चौक स्थित हनुमान मंदिर में भोज लिया।
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एक साथ बंद होंगे बदरीनाथ व भविष्य बदरी के कपाट
गोपेश्वर: परंपरा के अनुसार भविष्य बदरी धाम के कपाट भी बदरीनाथ धाम के साथ ही खोले और बंद किए जाते हैं। धाम के मुख्य पुजारी हनुमान प्रसाद डिमरी ने बताया कि बदरीनाथ धाम के साथ ही दोपहर बाद 3.35 बजे भविष्य बदरी मंदिर के कपाट भी बंद किए जाएंगे। मान्यता है कि जब जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर में भगवान नृसिंह की बायीं कलाई घिसकर टूट जाएगी, तब विष्णु प्रयाग के पास जय-विजय पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ जाने का रास्ता बंद हो जाएगा। इसके बाद भगवान नारायण के भविष्य बदरी में ही अपने भक्तों को दर्शन देंगे।
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18 नवंबर को शीतकालीन गद्दी पर विराजेंगे बाबा केदार
रुद्रप्रयाग: केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद 16 नवंबर को ही बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली रात्रि विश्राम के लिए रामपुर पहुंचेगी। 17 नवंबर को डोली गुप्तकाशी स्थित विश्वनाथ मंदिर और 18 नवंबर को अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी। इसी तरह द्वितीय केदार मध्यमेश्वर की उत्सव डोली कपाट बंद होने के बाद 19 नवंबर को ही अपने प्रथम विश्राम स्थल गौंडार गांव पहुंचेगी। 20 नवंबर को डोली रांसी और 21 गिरिया में विश्राम करेगी। 22 नवंबर को डोली के शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचने पर यहां मेले का आयोजन होगा। जबकि, तृतीय केदार तुंगनाथ की उत्सव डोली चार नवंबर को चोपता, पांच नवंबर को भनकुन और छह नवंबर को शीतकालीन गद्दीस्थल मक्कूमठ पहुंचेगी। तुंगनाथ धाम के कपाट बंद करने की तिथि मक्कूमठ में ही निकाली गई। इस दौरान वहां मठापति रामप्रसाद मैठाणी, प्रबंधक प्रकाश पुरोहित व आचार्यगण मौजूद रहे।
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16 नवंबर को मुखवा पहुंचेगी मां गंगा की डोली
उत्तरकाशी: अन्नकूट पर्व पर 15 नवंबर को गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने से पूर्व सुबह 8.30 बजे मां गंगा के मुकुट को उतार कर निर्वाण दर्शन के लिए रखा जाएगा। इसके बाद वेद मंत्रों के साथ मां की मूर्ति का महाभिषेक कर उत्सव डोली को मंदिर परिसर से बाहर निकाला जाएगा। कपाट बंद होते ही डोली अपने पहले विश्राम स्थल चंडेश्वरी देवी मंदिर (मार्कंडेय मंदिर) पहुंचेगी। 16 नवंबर को डोली मां गंगा के शीतकालीन गद्दीस्थल मुखवा (मुखीमठ) पहुंचेगी। यमुनोत्री धाम के कपाट बंद होने से पूर्व 16 नवंबर की सुबह देवी यमुना की डोली लेने के लिए शनि महाराज खरसाली (खुशीमठ) गांव से यमुनोत्री धाम पहुंचेंगे। इसी दिन डोली खरसाली गांव स्थित अपने शीतकालीन गद्दीस्थल यमुना मंदिर में विराजमान हो जाएगी।