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Bottle House: चीन सीमा पर बीआरओ के श्रमिकों ने बनाया 'बोतल हाउस', जानिए इसकी खासियत

Bottle House भारत-चीन सीमा क्षेत्र में सेना और बीआरओ के अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा इस्तेमाल की गईं पानी की खाली बोतलों को एकत्र कर मेहमानों के लिए बोतल हाउस तैयार किया है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 08:27 AM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 08:27 AM (IST)
Bottle House: चीन सीमा पर बीआरओ के श्रमिकों ने बनाया 'बोतल हाउस', जानिए इसकी खासियत
Bottle House: चीन सीमा पर बीआरओ के श्रमिकों ने बनाया 'बोतल हाउस', जानिए इसकी खासियत

गोपेश्वर(चमोली), देवेंद्र रावत। Bottle House भारत-चीन सीमा क्षेत्र में काम कर रहे सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के श्रमिक अनूठे अंदाज में पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। उन्होंने सीमा क्षेत्र में रह रहे सेना और बीआरओ के अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा इस्तेमाल की गईं पानी की खाली बोतलों को एकत्र कर मेहमानों के लिए बोतल हाउस तैयार किया है। इस बोतल हाउस की खासियत यह है कि यह सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में ठंडक का एहसास कराता है।

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उत्तराखंड के चमोली जिले में चीन सीमा से लगे क्षेत्र में सेना के साथ बीआरओ भी वर्षभर कार्य करता है। जोशीमठ से मलारी-सुमना मोटर मार्ग के किमी 61 पर बीआरओ का कैंप कार्यालय है। इसके अलावा अधिकारी आवास और ट्रांजिट हॉस्टल भी यहां है। कैंप में वर्षभर बोतलबंद पानी की जरूरत पड़ती है। बरसात के दौरान प्राकृतिक स्रोत पर गंदा पानी आने और शीतकाल में बर्फबारी के चलते स्रोत के लुप्त हो जाने से यहां बोतलबंद पानी पीना अधिकारियों-कर्मचारियों की मजबूरी है।

पिछले दिनों बीआरओ ने सीमा क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के लिए सफाई अभियान चलाया था। ऐसे में अन्य पोस्टों से भी पानी की खाली बोतलें बड़ी मात्रा में एकत्रित हो गईं। कैंप में बोतलों का ढेर देखकर सीमा क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य कर रहे 20 से अधिक श्रमिकों ने बोतल हाउस बनाने का निर्णय लिया, लेकिन इसके लिए उनके पास तकनीक नहीं थी। बीआरओ कैंप में मौजूद झारखंड निवासी प्रमोद कुमार ने बताया कि ऐसे में उन्होंने समय-समय पर कैंप में आने वाले बीआरओ के तकनीकी विशेषज्ञों से सलाह ली। फिर बोतल हाउस के निर्माण का खाका तैयार किया गया।

बताया कि एक-एक लीटर की इन बोतलों में गीली रेत-बजरी भरकर इस कदर मजबूत किया गया कि बोतल पिचके नहीं। इसके बाद बोतल हाउस की चिनाई शुरू हुई। 12 गुणा 22 फीट के इस बोतल हाउस में दस हजार से अधिक बोतलें इस्तेमाल हुईं। श्रमिक दिनभर काम कर खाली समय में इस बोतल हाउस का निर्माण करते थे। इसलिए तैयार होने में छह महीने लग गए। बोतल हाउस की छत पर टिन लगाई गई है। बिजली कनेक्शन भी है।

बीआरओ के मिस्त्री अजहर फारुख बताते हैं कि इसका उपयोग अधिकारियों के साथ आने वाले चालक, अन्य स्टाफ व मेहमानों के विश्राम के लिए किया जा रहा है।

शिवालिक परियोजना (बीआरओ) उत्तराखंड के चीफ इंजीनियर एएस राठौर कहते हैं कि श्रमिकों का यह प्रयास बेहद सराहनीय है। इससे सीमा क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण का कार्य भी हुआ है। इन बोतलों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन में काफी खर्चा आना था। श्रमिकों के प्रयास से संसाधनों की बचत तो हुई ही, अतिथि गृह भी अस्तित्व में आ गया। बताया कि बोतल हाउस को देखने के लिए पर्यटक और स्थानीय लोग भी आ रहे हैं और इसके साथ फोटो खिंचाकर श्रमिकों के प्रयासों को यादगार बना रहे हैं।

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उच्च हिमालय के लिए प्लास्टिक कचरा बेहद घातक

पद्मभूषण और अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट कहते हैं कि उच्च हिमालय में स्थित सीमावर्ती क्षेत्र और बुग्यालों (मखमली घास के मैदान) के पर्यावरण के लिए प्लास्टिक कचरा सबसे ज्यादा घातक है। इसे एकत्रित कर पुन: उपयोग में लाने वाले संस्थानों को देकर ही सीमा क्षेत्र के पर्यावरण को बचाया जा सकता है। ऐसे में बीआरओ के साथ काम कर रहे श्रमिकों का यह प्रयास पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से बेहद सराहनीय है। 

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