भगवान फ्यूंला नारायण के कपाट खुले, यहां पुजारी नहीं महिलाएं करती हैं भगवान का श्रृंगार
चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित फ्यूंला नारायण धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इस दौरान पूरा धाम फ्यूंला नारायण की जयकार से गुंजायमान रहा।
जोशीमठ, [जेएनएन]: भगवान फ्यूला नारायण के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इस पौराणिक मंदिर में ठाकुर जाति का पुजारी होता है और यहां उगने वाले विशेष फूल 'फ्यूंला' की वजह से इससे फ्यूंला नारायण कहा जाता है। दक्षिण शैली में बने इस पौराणिक मंदिर की खासियत यह है कि यहां पुजारी के बजाय, महिला भगवान नारायण का फूलों से श्रृंगार करती है।
चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से लगभग दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान फ्यूंला नारायण अत्यन्त रमणीक धाम है। जिसके कपाट आज सुबह 11 बजे खोल दिये गए हैं। सोमवार सुबह आठ बजकर 30 मिनट पर भर्की भूमियाल मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की गई और भूमियाल देवता की अगुवाई में सैकड़ों ग्रामीण समेत श्रदालु फ्यूंला नारायण धाम के लिए रवाना हुए। मंदिर के पुजारी रघुबीर सिंह को भूमियाल देवता के अवतारी पस्वा ने घंटी और चिमटा दिया। ये घंटी और चिमटा दयान चिंतन व चेतन को दिया जाता है।
आपको बता दें कि मंदिर के कपाट खुलने पर भगवान नारायण के स्नान के बाद फ्यूंला के फूलों से श्रृंगार किया जाता है। इससे पूर्व ग्रामीण अपनी गायों को लेकर फ्यूंला नारायण पहुंचते हैं और इन्हीं गायों के दूध और मक्खन का भगवान को भोग लगाया जाता है। खास बात यह है कि यहां पुजारी की जगह महिलाएं भगवान का श्रृंगार करती हैं। जिसके बाद पुजारी, श्रृंगार करने वाली महिला और गाय कपाट बंद होने तक फ्यूंला नारायण मंदिर में रहते हैं। भगवान को हर दिन तीनों पहर भोग लगता है। इस बार भगवान नारायण का श्रृंगार गोदांबरी देवी ने किया। उन्होंने कहा कि यह अधिकार महिलाओं को पीढ़ियों से मिला हुआ है।
सिर्फ डेढ़ माह खुला रहता है मंदिर
फ्यूंला नारायण मंदिर के पुजारी रघुबीर सिंह बताते हैं कि परंपरा के अनुसार मंदिर के कपाट श्रवण संक्रांति को खुलते हैं व डेढ़ माह बाद नंदा अष्टमी को बंद कर दिए जाते हैं।
भर्की के भूम्याल देवता करते हैं यात्रा की अगवानी
क्षेत्र के भेटा, भर्की, गवाणा व अरोशी सहित उर्गम घाटी के दर्जनों गांवों के लोग मंदिर में हक-हकूकधारीहैं। कपाट खुलने पर भर्की के पंचनाम देवता (भूम्याल) मंदिर से पुजारी सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ फ्यूंला नारायण मंदिर पहुंचते हैं। जबकि भर्की के भूम्याल देवता यात्र की अगवानी करते हैं। उर्गम सड़क मार्ग से फ्यूंला नारायण मंदिर चार किमी पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है।
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