पहली बार खरपतवार मुक्त होगी फूलों की घाटी, 15 हेक्टेयर क्षेत्र पॉलीगोनम से मुक्त
विश्व धरोहर फूलों की घाटी की जैवविविधता के लिए अभिशाप बन चुके पॉलीगोनम व ब्राउन फर्न के पौधों को प्राइमरी स्टेज में ही हटाने का काम शुरू कर दिया गया है।
चमोली, रणजीत सिंह रावत। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब विश्व धरोहर फूलों की घाटी की जैवविविधता के लिए अभिशाप बन चुके पॉलीगोनम व ब्राउन फर्न के पौधों को प्राइमरी स्टेज में ही हटाने का काम शुरू कर दिया गया है। इसमें आठ मजदूर लगे हैं और पहले चरण में 15 हेक्टेयर क्षेत्र को पॉलीगोनम के पौधों से मुक्त किया जा चुका है।
विदित हो कि खरपतवार प्रजाति के ये दोनों ही फूल घाटी में रक्तबीज की तरह फैल रहे हैं। बीते एक दशक में सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में कब्जा जमा चुके हैं। चमोली जिले में समुद्रतल से 12995 फीट की ऊंचाई पर 87.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली फूलों की घाटी में पॉलीगोनम व ब्राउन फर्न के फूल सैकड़ों प्रजाति के दुर्लभ फूलों का अस्तित्व संकट में डाल रहे हैं।
बीते एक दशक में घाटी के 65 हेक्टेयर क्षेत्रफल में पॉलीगोनम और 35 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ब्राउन फर्न फैल चुका है। इसके चलते इन खरपतवारों के पौधों के नीचे दुर्लभ प्रजाति के फूल व जड़ी-बूटियों के पौधे नहीं पनप पा रहे। बीते वर्षो में वन विभाग इन दोनों पौधों को हटाता तो रहा था, लेकिन यह अभियान तब चलता था, जब इन पर फूल खिल जाते थे।
फूल खिलने के बाद बीज झड़ने पर इनके पौधों का तेजी से विस्तार होता है। इसी को देखते हुए वन विभाग ने उगते ही इन्हें हटाने की योजना पर कार्य शुरू किया। ताकि इनके प्रसार को रोका जा सके।
फूलों की घाटी रेंज के वन क्षेत्राधिकारी बृजमोहन भारती बताते हैं कि घाटी में पॉलीगोनम वब्राउन फर्न का प्रसार गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। वर्तमान में यहां पॉलीगोनम की चार प्रजातियां पनप चुकी हैं। इन खरपतवार के पौधों की लंबाई ज्यादा होने के कारण इनके नीचे छोटी प्रजाति के फूलों के पौधे नहीं पनप पाते। इसलिए इस बार प्राइमरी स्टेज में ही इनके उन्मूलन का कार्य शुरू कर दिया गया।
भेड़-बकरियों के चुगान पर रोक बनी अभिशाप
राजकीय महाविद्यालय कर्णप्रयाग में वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विश्वपति भट्ट कहते हैं कि घाटी में खरपतवारों के पनपने की मुख्य वजह वहां भेड़-बकरियों के चरान-चुगान पर रोक लगाया जाना है। पहले घाटी में भेड़-बकरी चुगान प्रतिबंधित नहीं था। पसंदीदा आहार होने के कारण भेड़-बकरियों पॉलीगोनम (अमेला) को चट कर जाती थीं।
इससे फूलों के पौधों को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता था। छह नवंबर 1982 को फूलों की घाटी को नंदा देवी बायोस्फियर का हिस्सा घोषित कर दिया गया। साथ ही यहां भेड़-बकरियों के चुगान को भी प्रतिबंधित भी कर दिया गया। इससे घाटी में पॉलीगोनम का तेजी से फैलता चला गया।
डॉ. भट्ट के अनुसार घाटी में खरपतवारों के उन्मूलन के लिए वैज्ञानिक तरीका नहीं अपनाया जाता। अकुशल मजदूर पॉलीगोनम वब्राउन फर्न को हटाने का काम करते हैं, जिससे दुलर्भ प्रजाति के फूलों को भी नुकसान पहुंचता है।
घाटी में खिलते हैं 500 से अधिक प्रजाति के फूल
विश्व धरोहर फूलों की घाटी की अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। दुनिया की यह इकलौती जगह है, जहां प्राकृतिक रूप में 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं। इसके अलावा कई दुर्लभ प्रजाति की जड़ी-बूटियां भी यहां पाई जाती हैं।
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