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120 किमी दूर दंफूधार पहुंचकर भी मिली मायूसी

हरीश बिष्ट, गोपेश्वर: मूलरूप से फरकिया गांव की रहने वाली दिव्यांग लीला देवी अपने माइग्रेटेड

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 11:02 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 11:02 PM (IST)
120 किमी दूर दंफूधार पहुंचकर भी मिली मायूसी
120 किमी दूर दंफूधार पहुंचकर भी मिली मायूसी

हरीश बिष्ट, गोपेश्वर: मूलरूप से फरकिया गांव की रहने वाली दिव्यांग लीला देवी अपने माइग्रेटेड गांव अगथला (पीपलकोटी) से 120 किमी दूर दंफूधार पहुंची थीं। उन्हें उम्मीद थी कि आजादी के पर्व पर गमशाली पहुंच रहे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ¨सह रावत न सिर्फ उनकी पीड़ा सुनेंगे, बल्कि उसका निदान भी करेंगे। मगर, मुख्यमंत्री नहीं पहुंचे और लीला देवी मायूस होकर वापस लौटना पड़ा। खास बात यह कि मुख्यमंत्री की इंतजारी के दौरान जब लीला देवी को प्यास लगी तो पानी के लिए उन्हें घिसटकर 500 मीटर दूर तक जाना पड़ा।

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स्वतंत्रता दिवस पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को गमशाली की दंफूधार में आयोजित समारोह में शिरकत करनी थी। मुख्यमंत्री हेलीकॉप्टर से जोशीमठ तक तो पहुंचे, मगर मौसम खराब होने के कारण हेलीकॉप्टर वहां लैंड नहीं कर पाया। सो, उन्होंने जोशीमठ से ही देहरादून के लिए वापसी कर ली। उधर, गंफूधार में मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर ग्रामीणों में जबर्दस्त उत्साह था। साथ ही उन्हें नीती घाटी के लिए सौगात मिलने की उम्मीद भी थी।

इसी उम्मीद में भोटिया जनजाति बहुल गांव फरकिया की दिव्यांग लीला देवी भी अपनी पीड़ा मुख्यमंत्री के समक्ष बयां करने के लिए अगथला गांव से 120 किमी दूर दंफूधार पहुंची थी। अगथला सीमांत गांव फरकिया का माइग्रेटेड गांव है। लीला देवी का कहना था कि उन्हें समय पर दिव्यांग पेन्शन नहीं मिल पाती। मगर, मुख्यमंत्री का न आना उन्हें मायूस कर गया। दूसरी ओर, बाम्पा गांव के बच्चन ¨सह पाल का कहना था कि बाम्पा में लगे फोन का किराया छह से लेकर साढ़े छह रुपये प्रति मिनट के हिसाब से आ रहा है। जबकि, अन्य गांवों में कॉल रेट एक से लेकर डेढ़ रुपये तक है। इस समस्या को वह मुख्यमंत्री के समक्ष रखना चाहते थे। इसी तरह नीती गांव की विनीता देवी भी अन्य ग्रामीणों के साथ नीती मोटर मार्ग के डामरीकरण व चौड़ीकरण की मांग को लेकर दंफूधार पहुंची थी। उनका कहना था कि नीती मार्ग को हाइवे का दर्जा तो दे दिया गया, मगर मलारी से नीती तक न तो सड़क का चौड़ीकरण हुआ, न डामरीकरण ही। कई स्थानों पर तो सड़क जानलेवा बनी हुई है। मगर, उनकी सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गई।


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