Move to Jagran APP

ग्रामीण उत्पादों को शहरी बाजार कराएं उपलब्ध: भट्ट

संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: कर्णप्रयाग विकासखंड के कालेश्वर में आयोजित दो दिवसीय हिमालयन कॉन्क्ले

By JagranEdited By: Published: Sat, 27 Oct 2018 11:35 PM (IST)Updated: Sat, 27 Oct 2018 11:35 PM (IST)
ग्रामीण उत्पादों को शहरी बाजार कराएं उपलब्ध: भट्ट
ग्रामीण उत्पादों को शहरी बाजार कराएं उपलब्ध: भट्ट

संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: कर्णप्रयाग विकासखंड के कालेश्वर में आयोजित दो दिवसीय हिमालयन कॉन्क्लेव व्हेयर लाइवलीहुड मीट संस्टेनेविलिटि शनिवार को संपन्न हो गया। हिमालय कॉन्क्लेव के अंतिम दिन पर्यावरण संतुलन, आपदा प्रबंधन एवं पर्यटन संभावनाओं पर चर्चा की गई। जिले में आपदा प्रबंधन को मजबूत बनाने के लिए हिमालयन कॉन्क्लेव कार्यक्रम के दौरान जनपद चमोली की डिस्ट्रिक्ट डिजास्टर मैनेजमेंट वेबसाइट भी लांच की गई।

loksabha election banner

जिलाधिकारी स्वाति एस. भदौरिया ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट तथा विशेष सचिव पर्यावरण एंड ऊर्जा तेलंगाना अजय मिश्रा, विशिष्ट अतिथि प्रिंसिपल सेक्ट्ररी तेलंगाना शालिनी मिश्रा का हिमालयन कॉन्क्लेव में पुष्पगुच्छ एवं शाल भेंटकर स्वागत किया। पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने पहाड़ी क्षेत्र के उपेक्षित किसानों को सीधे कंपनियों के साथ जोड़ने के लिए जनपद में हिमालयन कॉन्क्लेव के आयोजन पर जिला प्रशासन की सराहना की। कहा कि आने वाले समय में यहां के किसानों को निश्चित रूप से इसका फायदा मिलेगा। कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए परियोजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए। कहा कि विकास के लिए सड़कों का निर्माण आवश्यक है, लेकिन सड़कों का निर्माण मानकों के अनुसार ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहाड़ों पर सड़क क¨टग मलबे का उचित निस्तारण न किए जाने, नाली व ड्रैनेज न होने के कारण कई प्राकृतिक आपदाएं जन्म ले रही हैं, जिससे पहाड़ के लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। कहा कि हिमालयी पर्यावरण का सीधा असर पूरे देश के पर्यावरण पर पड़ता है तथा इसमें छोटी से भी गड़बड़ी होने पर पूरे देश का पर्यावरण प्रभावित होता है। हिमालयी पर्यावरण को बचाने के लिए अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाए जाने जरूरी है।

अधिशासी निदेशक आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र उत्तराखंड डॉ. पियूष रौतेला ने आपदा प्रबंधन के पारंपरिक तरीकों पर जोर देते हुए कहा कि पुरानी शैली के मकान प्राकृतिक आपदाओं के न्यूनीकरण में किफायती साबित हुए हैं। उन्होंने भूकंप व अन्य आपदाओं से बचाव के लिए पारंपरिक शैली में ही आवासों के निर्माण पर जोर दिया।

वाडिया इंस्टीटयूट देहरादून के वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि शीतकाल में लगातार तापमान बढ़ने तथा बर्फबारी कम होने के कारण आज हिमालयी क्षेत्रों से ग्लेशियर लगातार घट रहे हैं। उन्होंने कहा कि केदारानाथ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में 1266 लेक को चिह्नित किया गया है, जिनकी निरंतर मॉनीट¨रग की जा रही है, ताकि भविष्य में केदारनाथ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को रोका जा सके। हिमालयन कॉन्क्लेव में पर्यावरण संतुलन एवं आपदा प्रबंधन को मजबूत बनाने के लिए आयोजित पैनल डिस्कशन के दौरान पुलिस अधीक्षक तृप्ति भट्ट, एडीएम एमएस बर्निया, संयुक्त मजिस्ट्रेट रोहित मीणा, आइटीबीपी के डिप्टी कमांडेट राज कुमार, एसीएमओ डॉ. मंयक बडोला, जिला पर्यटन अधिकारी बृजेंद्र पांडेय ने भी अपने अनुभवों को साझा किया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.