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बदरी विशाल के दर पर 'सूरदास' बेच रहा प्रसाद

दस साल पहले एक युवक भगवान बदरी विशाल के दर पर भीख मांगकर पेट की भूख बुझाने आया था। यहां भीख मांगने की बजाय वह प्रसाद बेचकर परिवार का भरण-पोषण कर रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 15 Oct 2017 10:50 AM (IST)Updated: Sun, 15 Oct 2017 08:29 PM (IST)
बदरी विशाल के दर पर 'सूरदास' बेच रहा प्रसाद
बदरी विशाल के दर पर 'सूरदास' बेच रहा प्रसाद

गोपेश्वर(चमोली), [जेएनएन]: जन्म से नेत्रहीन कृष्णा पाल दस साल पहले भगवान बदरी विशाल के दर पर भीख मांगकर पेट की भूख बुझाने आया था, लेकिन यहां आकर उसका मन ऐसा परिवर्तित हुआ कि दशा और दिशा ही बदल गई। भीख मांगने की बजाय वह प्रसाद बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। झारखंड के इस युवक के दो बच्चे गांव के विद्यालय में पढ़ रहे हैं।

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झारखंड के ग्राम उपनमजियाड़ा पोस्ट बुरकुंडा जिला दुमका के 32 वर्षीय कृष्णा की आंखों की रोशनी जन्म से ही चली गई थी। बदरीनाथ धाम में सूरदास के नाम से जाने जाने वाला कृष्णा नेत्रहीनता के चलते पढ़-लिख भी नहीं पाया। पहले मां-बाप का सहारा था, तो गुजर बसर हो रही थी, लेकिन वर्ष 2004 में मां-बाप का साया सिर से उठा, तो खाने के भी लाले पड़ गए।

गांव वालों के तानों से तंग आकर कृष्णा वर्ष 2005 में घर छोड़कर साधुओं की टोली में शामिल हो गया, लेकिन हरिद्वार पहुंचने के बाद उसे कुछ साधु वेषधारी भिखारी उसे बदरीनाथ ले गए और यहां उसे मंदिर मार्ग पर लगी लाइन में बैठाकर भीख मंगवाने लगे। बदरीनाथ धाम में कृष्णा को भीख मांगना अच्छा नहीं लगा, लेकिन साथियों के दबाव में उसे यह कार्य करना पड़ता था।

वर्ष 2006 में साथियों से अलग होकर कृष्णा ने बदरीनाथ धाम में ही कुछ करने की ठानी और गले में प्लास्टिक की टोकरी टांग कर प्रसाद बेचना शुरू कर दिया। भिखारियों की लंबी लाइन के बाद प्रसाद की टोकरी लिए खड़े कृष्णा यात्रियों से प्रसाद खरीदने का अनुरोध करता है तो यात्री इस दिव्यांग से प्रसाद खरीदे बिना नहीं रहते। कृष्णा का कहना है कि वह देख नहीं पाते हैं। ऐसे में यात्री प्रसाद की कीमत की राशि उसे दे देते हैं। अगर कोई ज्यादा राशि देना चाहे तो कृष्णा उसे हाथ जोड़कर बस प्रसाद के पैसे ही देने को कहता है। बड़े नोट देने की स्थिति में ग्राहक ही कृष्णा की जेब से बाकी बची धनराशि ले लेते हैं। 

काम में हुई बरकत

इस काम में कृष्णा को ऐसी बरकत हुई कि यात्रा सीजन में दो लाख से अधिक की आय हो जाती है। कृष्णा जब इस काम के बदले धन कमाकर वर्ष 2008 में अपने गांव गया तो गांव वालों ने केवल उसकी प्रशंसा की, बल्कि गांव के पास की ही एक युवती कुमकुम ने उससे शादी कर ली। आज कृष्णा का एक लड़का व एक लड़की भी है। दोनों बच्चे स्वस्थ हैं। कृष्णा के दोनों बच्चे प्राथमिक विद्यालय में अध्ययन करने के लिए गांव के ही स्कूल में जाते हैं।

कृष्णा का कहना है कि उसे मेहनत कर सुकून मिल रहा है। बाकी भगवान बदरी विशाल की ही कृपा है कि आज गांव में वह सम्मान की जिंदगी जी रहा है। परिवार, नातेदार भी उसकी मेहनत से खुश हैं। यह सब भगवान बदरी विशाल की ही कृपा है। वह प्रतिवर्ष यात्रा सीजन के दौरान यहां पहुंचता है और कपाट बंद होने के बाद घर लौट जाता है। 

हर कोई खुश है कृष्णा से

बदरीनाथ निवासी धनेश्वर डांडी का कहना है कि शरीर से स्वस्थ लोग भगवान बदरी विशाल में भिखारियों की लाइन पर बैठे रहते हैं, लेकिन आंख न देखने के बाद भी कृष्णा प्रसाद बेचने का काम कर अपनी आजीविका चलाकर औरों के लिए प्रेरणा बना हुआ है। बदरीनाथ में रुद्राक्ष इंपोरियम के मालिक जितेंद्र पटवाल का कहना है कि नि:संदेह दोनों आंखों से अंधे होने के बाद भी आजीविका के लिए काम करना कृष्णा पाल के साहस को दर्शाता है। कृष्णा पाल जिस ईमानदारी से काम कर रहा है, इससे वह यात्रियों सहित सभी का दुलारा बन चुका है।

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