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वनाग्नि रोकने के लिए पंचायतों की भूमिका अहम

जिलाधिकारी रंजना राजगुरु ने कहा कि वनाग्नि रोकने के लिए पंचायतों की अहम भूमिका है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 11:03 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 06:15 AM (IST)
वनाग्नि रोकने के लिए पंचायतों की भूमिका अहम
वनाग्नि रोकने के लिए पंचायतों की भूमिका अहम

बागेश्वर, जेएनएन: जिलाधिकारी रंजना राजगुरु ने कहा कि वनाग्नि रोकने के लिए पंचायतों की अहम भूमिका होती है। वन संपदा को बचाने और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए वनों को आग से बचाना जरूरी है। उन्होंने जिला स्तरीय वनाग्नि प्रबंधन समिति की बैठक में तमाम दिशा-निर्देश दिए। डीएफओ ने वनाग्नि को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी।

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गुरुवार को जिला सभागार में आयोजित बैठक में डीएम ने कहा कि 15 फरवरी से 15 जून का समय अतिसंवेदनशील है। वनों को आग से बचाने के लिए पंचायतों और वन पंचायतों को जागरूक करना होगा। सभी उप जिलाधिकारी, आपदा प्रबंधन अधिकारी एवं वन विभाग के अधिकारियों के साथ तहसील स्तर पर ग्राम प्रधानों एवं वन पंचायतों के सरपंचों के साथ बैठक आयोजित करेंगे। वनाग्नि को रोकने एवं उससे होने वाले दुष्परिणामों के संबंध में जानकारी देंगे। लोनिवि, पीएमजीएसवाइ और एनएव सड़कों की सफाई करेंगे। शरारती तत्वों पर भी नजर रखेंगे और कठोर कार्रवाई सुनिचित करेंगे। इस मौके पर एसपी रचिता जुयाल, एडीएम राहुल कुमार गोयल, एसडीएम राकेश चंद्र तिवारी, प्रमोद कुमार, जयवर्धन शर्मा, योगेंद्र सिंह, आपदा प्रबंधन अधिकारी शिखा सुयाल आदि मौजूद थे।

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सरपंचों को मिलेगा सम्मान

वनों को आग से बचाने पर सरपंचों को भी बेहतर काम के लिए सम्मानित किया जाएगा। इसके अलावा अन्य लोग भी सम्मानित होंगे। डीएम ने राजस्व, ग्राम पंचायत विकास अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी, ग्राम प्रहरी, अध्यक्ष महिला मंगल दल, युवक दल के प्रतिधिनियों की बैठक कराने के भी निर्देश दिए।

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30 क्रू-स्टेशन स्थापित

डीएफओ मयंक झां ने स्लाइड शो के माध्यम से वनाग्नि रोकने की विस्तार से जानकारी दी। बताया कि जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल 2310 वर्ग किमी है। वनों का क्षेत्रफल 1064 वर्ग किमी है। जिसमें आरक्षित वनों का क्षेत्रफल 662.36 वर्ग किमी है। सिविल वनों का क्षेत्रफल 23.0208 वर्ग किमी है, पंचायती वनों का क्षेत्रफल 380.87 वर्ग किमी है, जिसमें वनों की मुख्य प्रजातियों में चीड़ लगभग 80 प्रतिशत है और 20 प्रतिशत अन्य प्रजातियां हैं। छह वन रेंजों में 30 क्रू-स्टेशन स्थापित किए गए हैं।


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