दो दिन से धधकते रहे वज्यूला के जंगल
वज्यूला क्षेत्र के जंगल दो दिनों तक जलते रहे।
जागरण संवाददाता, बागेश्वर : वज्यूला क्षेत्र के जंगल दो दिनों तक जलते रहे। इससे करीब पांच हेक्टेयर वन भूमि को खासा नुकसान होना बताया जा रहा है। नष्ट होने वाली वन संपदा में चीड़ के अलावा बुरांश, काफल के पेड़ भी शामिल हैं। पानी के स्त्रोत भी इसी क्षेत्र में बताए जा रहे हैं। हालांकि वन विभाग कंट्रोल फायर लाइन बर्निग का हवाला दे रहा है। गुरुवार की रात एकाएक वज्यूला वन क्षेत्र के मटे-थाड़ीगाड़ और उड़खुली गांव के नीचे की तरफ बीच जंगल में आग लग गई। राज्य आंदोलनकारी हेम पंत ने इसकी जानकारी फॉरेस्टर को दी, लेकिन दो दिनों तक आग पर काबू नहीं पाया गया। उन्होंने बताया कि करीब पांच हेक्टेयर वन भूमि में नए पौध और अन्य पेड़ झुलस गए हैं। पानी के स्त्रोत को भी नुकसान हो सकता है। दो दिन तक जंगल जलने के बाद आग बुझ गई। उन्होंने कहा कि नया वन कानून आ रहा है और वन विभाग ने ही रिपोर्ट भारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय और एनजीटी को देनी है। सरकार विभाग की रिपोर्ट ही मानेगी, लेकिन हकीकत कुछ और होती है। जंगलों को आग लगने के बाद ही बजट मिलता है। विभाग अपनी रिपोर्ट में आग लगाने के लिए ग्रामीणों को जिम्मेदारी ठहराता आया है। ग्रामीण केदार सिंह, पूरन सिंह, हरीश सिंह, भवानी राम, हिम्मत राम, रतन राम आदि ने कहा कि यदि जंगलों को आग में झौंका गया तो वे उग्र आंदोलन को बाध्य होंगे। इधर, आरओ हरीश सिंह खर्कवाल ने कहा कि बारिश के कारण कंट्रोल फायर लाइन बर्निग नहीं हो पाई थी। करीब दो हेक्टेयर वन भूमि में कंट्रोल बर्निग की गई और काफी मलबा भी जलाया गया। जंगल के नीचे की तरफ पौध लगाए गए हैं, उन्हें बचाना जरूरी था।