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बागेश्वर मे बग्वाल को सुहागिनों ने बनाए च्यूड़े

जागरण संवाददाता बागेश्वर दीपावली पर्व के साथ ही भैयादूज के त्योहार का भी खास महत्व है। यह

By JagranEdited By: Published: Mon, 28 Oct 2019 10:52 PM (IST)Updated: Tue, 29 Oct 2019 06:32 AM (IST)
बागेश्वर मे बग्वाल को सुहागिनों ने बनाए च्यूड़े
बागेश्वर मे बग्वाल को सुहागिनों ने बनाए च्यूड़े

जागरण संवाददाता, बागेश्वर: दीपावली पर्व के साथ ही भैयादूज के त्योहार का भी खास महत्व है। यह त्योहार 29 अक्तूबर को मनाया जाएगा। सोमवार सुबह महिलाओं ने भीगे हुए धान को चूल्हे में भूने। इसके बाद उन्होंने धानों को ओखली में डालकर उन्हें मुसल से कूटकर च्यूड़े बनाए। त्योहार के लिए विवाहित बहनों का भी अपने मायका आना शुरू हो गया है। कई लोग अपनी बहनों से च्यूड़े लगवाने के लिए उनके ससुराल जाएंगे। दीपावली पर्व के दूसरे दिन जिले में सुहागिनों ने बग्वाल और भाईदूज के लिए धान के च्यूड़े तैयार किए। यह च्यूड़े देव मंदिरों में भी अíपत किए जाएंगे। महिलाएं सुबह उठी और स्नान ध्यान करने के बाद गोवर्धन पूजा की तैयारियां हुई।देव मंदिरों में पूजा-अर्चना की और पहले से भिगोए धान ओखली में कूटे। उधर, कपकोट, दुग नाकुरी, कांडा, शामा, काफलीगैर आदि तहसीलों में भी भैयादूज के च्यूड़े तैयार किए गए। भूने हुए धानों से बनने वाले च्यूड़े काफी स्वादिष्ट होते हैं और बहू-बेटियां उन्हें सालभर खातीं भी हैं। ----------- बग्वाल के लिए महिलाओं ने ओखली में कूटे च्यूड़े -पहाड़ों में आज भी जिदा है यह परंपरा --फोटो-28बीएजीपी-6-- गरुड़: बग्वाल के लिए महिलाओं ने ओखली में च्यूड़े कूटे। भैया दूज को घर के बुजुर्ग व कुल पिरोहित च्यूड़े सिर में रखकर आशीर्वाद देते हैं। इसके लिए गोवर्धन पूजा के दिन महिलाओं ने घर-घर में च्युड़े कूटे। मंगलवार को भैया दूज का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा।यह त्योहार भाई-बहिन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।इस त्योहार को महिलाओं को बेसब्री से इंतजार रहता है।इस दिन बहिन भाई के सिर में च्यूड़े रखकर उसकी तरक्की व सुख-समृद्धि की कामना करती है।भाई बहिन को रक्षा का वचन देता है।सोमवार को महिलाओं ने सर्वप्रथम ओखली की पूजा की और दीपावली से पांच दिन पूर्व भिगोए गए धान को भूनकर ओखली में कूट कर च्यूड़े बनाए। महिलाएं दिनभर च्यूड़े बनाने में व्यस्त रही। पहाड़ों में आज भी यह परंपरा जिदा है। यहां आज भी घर-घर में च्यूड़े बनाए जाते हैं। इसे संस्कृति के संरक्षण के रुप में भी देखा जाता है।

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