पीढ़ी को हुड़का वादन से जगा रहे मोहन
जागरण संवाददाता, बागेश्वर : यूं तो बांसुरी वादन में मोहन का कोई सानी नहीं..मगर बदलते परि
जागरण संवाददाता, बागेश्वर : यूं तो बांसुरी वादन में मोहन का कोई सानी नहीं..मगर बदलते परिवेश में खोती जा रही पहाड़ी संस्कृति को मोहन हुड़का वादन से जगा रहे हैं। खास बात यह है वह यह हुड़का खुद बनाकर इसके कद्रदानों तक पहुंचा रहे हैं। युवा पीढ़ी में अपनी संस्कृति से रूबरू कराने का एक नायाब मौका दे रहे हैं।
प्राचीन संस्कृति को ¨जदा रखने की एक अनूठी पहल बागेश्वर के भंगेड़ी गांव के लोक कलाकार मोहन जोशी ने की है। मोहन किसी परिचय का मोहताज नही है। अपनी उत्कृष्ट बांसुरी वादन प्रतिभा की वजह से उनका नाम उत्तराखंड के साथ देश-विदेश में भी है। मोहन जोशी बताते हैं कि करीब डेढ़ साल पहले एक कार्यक्रम में हुड़का वादन के वक्त उनके जहन में लुप्त होती संस्कृति को संजोकर युवा पीढ़ी में बांटने का मन बनाया। उन्होंने कुछ जरूरी चीजें एकत्र करके खुद हुड़का बनाकर और इसे सही कद्रदानों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है।
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हुड़का बागेश्वर की खास पहचान
बांसुरी वादक मोहन जोशी खुद हुड़का भी बजाते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में तक वे हुड़का ले गए। उन्हें अब हुड़के का बाजार भी मिल गया है। वे लखनऊ, दिल्ली, मुंबई और छत्तीसगढ़ तक हुड़का पार्सल के जरिए भेज रहे हैं।
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कैस बनता है हुड़का
हुड़के की नाल ¨खन के पेड़ की हल्की लकड़ी से बनती है। ये पेड़ मल्ला दानपुर में मिलता है। मैदानी इलाकों में बेर के पेड़ के तने से भी नाल बनती है। थाप बकरे की आंत से बनता है। इसके अलावा किसी मरे जानवर की पतली खाल से भी तैयार हो सकता है।
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कुंडल ऐसे बनते
बेंत की लकड़ी से इसके साइज के कुंडल बनाए जाते हैं। जिसमें खाल को सेट किया जाता है।
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वर्जन-
डेढ़ साल पहले से हुड़का बना रहा हूं। तीन हजार रुपये लागत आ रही है। एक दर्जन हुड़के दूसरे राज्यों में पार्सल के जरिए भेजें हैं। डिमांड लगातार बढ़ रही है। हुड़का उद्योग लगाने की सोच रहा हूं।
-मोहन चंद्र जोशी।