घी त्यारक, चुपाड़ा हाथ, बेड़ूवा र्वाट, तिमलाक पात
जागरण संवाददाता बागेश्वर जिले में घी-संक्राति का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। देव मंदिरों
जागरण संवाददाता, बागेश्वर : जिले में घी-संक्राति का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। देव मंदिरों में पूजा-अर्चना की गई और ग्रामीण क्षेत्रों के मंदिरों में चांचरी, झोड़ा आदि की धूम रही। मवेशियों को भी भरपूर चारा आदि की व्यवस्था के बाद ही लोग त्योहार मनाने में जुटे।
माना जाता है कि घी संक्रांति के दिन चंद्र शासनकाल में स्थानीय लोग राजा को उपहार दिया करते थे। इस पर्व को स्थानीय बोली में घी-तयार कहते हैं और ओलगिया नाम से भी इसे जाना जाता है। पूरे उत्तराखंड में यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग दूब घास की पत्तियां घी में डुबोकर सर, कोहनी और ठुड्डी पर घी लगाते हैं। उड़द को पीसकर गुंथे आटे में भरकर रोटियां बनाई जाती हैं। रोटियों को घी में भिगोकर खाया जाता है और प्रत्येक पकवान में घी का प्रयोग शुभ माना जाता है। यहां की मान्यता है कि जो घी नहीं खाता वह अगले जन्म में गनेल (घेंघा) की योनि में जाता है। वहीं कपकोट, शामा, दुग नाकुरी, कांडा, काफलीगैर आदि स्थानों पर स्थित भूमियाल मंदिर और अपने ईष्ट देव मंदिर में पूजा अर्चना की गई। ग्रामीणों ने मक्के के भुट्टे व अरवी की बेल कुलदेवता को समर्पित की। इसी के साथ पारंपरिक उल्लास का त्योहार रंगारंग तरीके से आरंभ किया गया। लोक गीतों की धुन पर कुमाऊंनी चांचरी आदि का आयोजन किया गया। महिलाओं ने मिलकर झोड़ा लोकनृत्य किया।