चंद्रशेखर ने गरीबी को अपनी मेहनत से दी मात
चंद्रशेखर द्विवेदी बागेश्वर अगर मन में विश्वास हो तो कोई भी चीज असंभव नहीं। ऐसा ही कुछ कर
चंद्रशेखर द्विवेदी, बागेश्वर
अगर मन में विश्वास हो तो कोई भी चीज असंभव नहीं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया चौरसों के चंद्रशेखर पांडे ने। उन्होंने 22 साल तक मुंबई में प्राइवेट नौकरी की, लेकिन उनका मन वहां नहीं लगा। वह आ गए गांव को आबाद करने चौरसों। उनके पास संसाधनों की काफी कमी थी। हिम्मत नहीं हारी और अपने बंजर होते जा रहे खेतों को आबाद किया। उनकी मेहनत रंग ला रही है। वह आज क्षेत्र में रह रहे अन्य लोगों के लिए नजीर बने हुए हैं।
जिले के गरुड़ स्थित चौरसों गांव में 2017 में आए चंद्रशेखर पांडे ने कुछ करने की ठानी। वह 22 साल तक मुम्बई में हाड़तोड़ मेहनत कर वापस गांव लौट आए। धनाभाव के कारण पहले वह हिम्मत नहीं जुटा पाए। कृषि, बागवानी आदि का कार्य पहले नहीं किया था। फिर कुछ मित्रों की सलाह ली। जिसके बाद वह जुट गए खेती में। चौरसों गांव में उनके पास दस नाली जमीन थी। उन्होंने बंजर जमीन को आबाद करने का मन बनाया। परंपरागत खेती से हटकर उन्होंने तुलसी का उत्पादन करना शुरू किया। बाजार में तुलसी की काफी डिमांड थी और वह 300 रुपये किलो तक बिकती थी। उन्होंने अपने खेतों में तुलसी लगाई। कुछ ही समय बाद उन्हें परिणाम दिखाई देने लगे। तुलसी का उत्पादन काफी अच्छा हुआ। पहले ही साल 10 नाली जमीन में 5 क्विटल तुलसी हो गई। वह उत्पादन को लेकर काफी खुश थे। उन्होंने अब इसकी तकनीकी जानी ताकि कम जगह पर ही अच्छा उत्पादन किया जा सके। इसमें उनकी मदद जड़ी-बूटी शोध केंद्र के निदेशक चंद्रशेखर सनवाल, एचआरडीए विजय भट्ट ने की। आजीविका से भी उन्होंने सलाह ली। अब वह आस-पास के गांव वालों को प्रोत्साहित कर रहे है। वह इस कारोबार को बढ़ाना चाहते है। अभी वह इसी कारोबार से तीन से चार लाख रुपया प्रति माह अíजत कर रहे हैं। इसके अलावा श्री पांडे अपने खेतों में बेमौसमी सब्जी, तेजपात, रीठा, आंवला, सिट्रस प्रजाति के माल्टा, नारंगी आदि का भी उत्पादन कर रहे है। देखा देखी आस पास के लोग भी गांव ना छोड़ने का मन बना रहे है। वह तकनीकी पर आधारित कृषि कर अपनी आमदमी दोगुनी करने का प्रयास कर रहे हैं।
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पहाड़ में वैज्ञानिक तकनीक से कृषि, बागवानी की जाए तो अच्छी आमदनी की जा सकती है। अक्सर लोग जंगली जानवरों के डर से खेती करना छोड़ रहे हैं। वह ऐसी खेती करें जिसको यह जानवर नुकसान नही करते। ऐसे कई उत्पाद है जिनकी बाजार में डिमांड हैं।
-चंद्रशेखर पांडे, प्रगतिशील काश्तकार, चौरसों