सुमगढ़ घटना को याद करते ही सिहर उठते हैं आचार्य
18 अगस्त 2010 के दिन सुमगढ़ घटना हुई थी। जिसे जिले के इतिहास का काला दिन कहा जाता है।
सुमगढ़ घटना को याद करते ही सिहर उठते हैं आचार्य
जागरण संवाददाता, बागेश्वर : 18 अगस्त 2010 के दिन सुमगढ़ घटना हुई थी। जिसे जिले के इतिहास का काला दिन कहा जाता है। स्कूल के 18 बच्चे मलबे में जमींदोज हो गए थे। सुमगढ़ घटना को अब भी कोई भूल नहीं सका है। प्रतिवर्ष 18 अगस्त को दिवंगत बच्चों की याद में सुमगढ़ समेत अन्य स्थानों में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
उस दिन सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। भयंकर बारिश हो रही थी। पीछे की तरफ से एकाएक भूस्खलन हुआ और 18 बच्चे जमींदोज हो गए। इस घटना को 11 वर्ष हो गए हैं। बच्चों की 12वीं पुण्य तिथि है। घटना को याद करते हुए अब भी हर कोई सिहर उठता है। घटना के चश्मदीद सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य बालक सिंह भंडारी घटना को याद करते हुए सिहर उठते हैं। वे कहते हैं कि मेरी जिंदगी में अब तक का वह सबसे बुरा दिन था। 17 अगस्त की रात से ही क्षेत्र में बारिश थी जो कि 18 अगस्त की सुबह काफी तेज हो गई थी। गांव के आंतरिक मार्ग भी बंद हो चुके थे। तेज बारिश के कारण उस दिन स्कूल में मात्र 28 बच्चे आए थे। जबकि 140 बच्चे पंजीकृत थे। साढ़े नौ बजे इंटरवल हुआ और तेज बारिश के कारण बच्चे व अध्यापक कक्ष में ही रहे। बाहर से तेज आवाज व हवाएं चलने के कारण वे कुछ आचार्यों के साथ बाहर आए थे। तभी अचानक शिशु व शिशु प्रथम कक्ष में पिछली दीवार से मलबा आ गया। इसके बाद अनहोनी की आशंका के साथ वे अंदर गए। तब तक कई बच्चे मलबे में दब चुके थे। अध्यापिका थापेश्वरी देवी कुछ बच्चों के साथ बहते हुए दरवाजे पर पहुंची थी। उन्हें जो बच्चे दरवाजे पर दिखे, उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। बाद में पता चला कि मलबे में 18 बच्चे जमींदोज हो चुके थे। घटना को याद करते हुए अब और अधिक जानकारी न लेने की अपील हुए वह काफी भावुक हो गए।
थापेश्वरी के आंखों के सामने हुई घटना
शिशु मंदिर की अध्यापिका थापेश्वरी देवी भी घटना को याद करते हुए सिरह उठती हैं। कहती हैं कि उस संबंध में उनसे कुछ न पूछा जाए। भावुक होते हुए बस इतना बताती है कि कुछ बच्चे उनके साथ मलबे में बहते हुए आए और दरवाजे में अटक गए। उनके कमर व पैर में चोटें आईं थीं। वे दिवंगत बच्चों की याद में सिसकियां लेने लगती हैं।
अब नए भवन में चलता है स्कूल
ग्रामीणों व अभिभावकों के सुझाव पर जिस भवन में घटना हुई थी, वहां से स्कूल को स्थानांतरित कर दिया गया है। अब स्कूल तप्तकुंड में अपने भवन में स्थानांतरित कर दिया है। घटना वाला भवन ध्वस्त कर दिया गया है। मैदान में दफन बच्चों की याद में स्मारक बनाया गया है। तीन कक्षों का उस समय का नया स्कूल भवन अब खंडहर है।