जंगली जानवरों ने की गांवों में खेतीबाड़ी चौपट
संवाद सहयोगी, चौखुटिया: सरकार पहाड़ में किसानों की कृषि आय दोगुनी करने के नाम पर ख
संवाद सहयोगी, चौखुटिया: सरकार पहाड़ में किसानों की कृषि आय दोगुनी करने के नाम पर खूब ढिढ़ोरा तो पीट रही है, लेकिन जंगली जानवरों से खेती को बचाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो रही है। जिन्होंने गांव गांव में खेतीबाड़ी चौपट कर दी है। ऐसे में फसल की बर्बादी को देख काश्तकार अंदर ही अंदर आंसू के घूंट पीने को विवश हैं तथा पहाड़ के गांवों से पलायन रोकने का सरकार का नारा भी खोखला साबित हो रहा है।
पहाड़ के तमाम गावों में बीते कई वर्षो से दिन में बंदर तो रात में जंगली सूअरों का आतंक बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि रात में तो जंगली सूअर झुंड के रूप में खेतों में पहुंच कर खड़ी फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दे रहे हैं। जंगली जानवरों के बढ़ते प्रभाव से फसल ही नहीं सब्जी उत्पादन भी चौपट हो गया है। कहीं कहीं तो काश्तकारों ने किसानी ही छोड़ दी है। ऐसे में काश्तकार लगातार हाशिए पर जा रहे हैं तथा पलायन का भी यह एक कारण बन गया है।
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गेवाड़ घाटी में कई क्षेत्रों में सूखे का प्रभाव
प्रधान हरी राम, प्रगतिशील किसान गोविंद बल्लभ, सूरज सिंह कुमयां, पूर्व के. एमएस बिष्ट, गोकुला नंद व प्रधान दान सिंह का कहना है कि जंगली जानवर ही नहीं काश्तकार प्रकृति की मार भी झेल रहे हैं। इस बार बरसात के सीजन में बारिश न होने से यहां कई क्षेत्रों में फसल चौपट है। जेठुवा, डांग, पूराना डांग, भगोती व मासी समेत कई अन्य हिस्सों में बारिश न होने एवं समय पर नहर का पानी न मिलने से फसल बर्बाद हो गई है। असिंचित भागों में तो और भी विकट समस्या बनी है।
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इनकी भी सुनो, क्या कहते हैं किसान
काश्तकार दिगंबर सिंह नेगी, सूरज कुमयां व प्रधान दान सिंह कुमयां का कहना है कि अपने जीवन यापन हेतु किसान खेतों में पूरे वर्षभर मेहनत कर पसीना बहाते हैं, पर जब फसल तैयार होती है तो जंगली जानवर पल भर में फसल तहस-नहस कर देते हैं। ऐसे में उनके समक्ष किसानी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। सरकार इस दिशा में ध्यान दे।