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आज बटि छुट्टो मैति क मुलूक, र्वै धना लगाए..

संवाद सहयोगी चौखुटिया देवों की बराता रोई लागो बाटा. आज बटि छुटो मैति क मूलुक.

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Sep 2019 10:42 PM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2019 10:42 PM (IST)
आज बटि छुट्टो मैति क मुलूक, र्वै धना लगाए..
आज बटि छुट्टो मैति क मुलूक, र्वै धना लगाए..

संवाद सहयोगी, चौखुटिया : देवों की बराता रोई लागो बाटा., आज बटि छुटो मैति क मूलुक., जा चेलि गवारा ओ सेई कैलाशा., नि जानूं नि जानूं ओ सेई कैलाशा., ओ बाई गंवारा र्वै धना लगाए व आंसू छोड़ि छै रांग कसि बूंद.जैसे मा नंदा के भावपूर्ण गीतों की धूम। हर किसी के चेहरे पर उदासी के भाव, लेकिन आस्था का अटूट संगम। मौका था मां नंदा को बगड़ी गांव से विदा करने का। भारी संख्या में श्रद्धालु इस परंपरा के भागीदार बने।

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रंगीली गेवाड़ की धरती के जाबर-ताल कोट्यूड़ा में चल रहे मां-नंदा पूजन महोत्सव के 7वें दिन सोमवार को बगड़ी गांव से मां-नंदा के प्रतीक कदली वृक्ष को पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ विदा किया गया। इस परंपरा का भागीदार बनने के लिए सुबह से ही दूर गांवों से श्रद्धालुओं का पहुंचने का क्रम शुरू हो गया तथा मेला स्थल बगड़ी में खासी भीड़ जुट आई। इस दौरान मां-नंदा समेत अन्य देव डंगरियों ने दर्शन दिए एवं कदली वृक्ष में इंतजार में खड़े रहे।

वर्षाे चली आ रही प्रथा के अनुसार जमराड़ गांव से कदली वृक्ष को काटकर जोशी परिवार व ग्रामीणों द्वारा उसे बगड़ी गांव की सरहद में लाकर बैड़िया परिवार को सौंप दिया। करीब 11 बजे बगड़ी से कदली वृक्ष को मां नंदा के विदाई गीत गाकर पूरे रस्मो-रिवाज के साथ बिदा किया गया। जहां से मां नंदा प्रतीक कदली वृक्ष का डोला अमस्यारी, टेड़ागांव व कोट्यूड़ा में स्थापित ड्योडियों की परिक्रमा कर दोपहर बाद मां नंदा देवी मंदिर जाबर ताल पहुंचा। जहां कदली वृक्ष से मां नंदा की मूर्ति बनाई गई एवं पूरे श्रंगार के बाद देर सायं तक पूजा-अर्चना की गई।

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बगड़ी से दुल्हन की तरह विदा हुई मां-नंदा

उत्तराखंड की धरती में मां नंदा देवी पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि इस अनूठी परंपरा के जरिए मां नंदा को उनकी ससुराल कैलाश के लिए विदा किया जाता है। ऐसे ही बगड़ी से मां नंदा को विदा करने के दौरान ऐसा माहौल बन जाता है, जैसे दुल्हन को विदा किया जाता है। इस भावपूर्ण क्षण में श्रद्धालुूओं के चेहरों पर उदासी के भाव झलक उठते हैं।

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कत्यूर से जगरिए बुलाने की है परंपरा

युं तो मां नंदा देवी पूजन मेले के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा मां के गीत गाए जाते हैं, लेकिन कत्यूर घाटी से जगरिए बुलाने की परंपरा आज भी कायम है। जगरियों की टीम यहां पहुंचकर मां नंदा को कैलाश भेजने तकमां नंदा के गीतों को गाते हैं।

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देर सायं से जाबर-ताल का मेला शुरू

जाबर-ताल मं नंदा देवी मंदिर परिसर में कदली वृक्ष से नंदा की मूर्ति तैयार किए जाने के बाद मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने मां नंदा के दर्शन किए तथा देर सायं तक यह क्रम चलता रहा। बाद में रात का मेला शुरू हो गया है, जो पूरी रातभर चलेगा। इस दौरान देव डंगरिये अलग अलग पहरों में दर्शन देंगे।


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