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गुमनाम कुमाऊं की दूसरी कत्यूर घाटी को मिलेगी नई पहचान

संवाद सहयोगी, रानीखेत : बैजनाथ गरुड़ (बागेश्वर) के बाद में पर्यटन नगरी से दूर तिपौला सेरा मे

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Jun 2018 11:05 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 11:05 PM (IST)
गुमनाम कुमाऊं की दूसरी कत्यूर घाटी को मिलेगी नई पहचान
गुमनाम कुमाऊं की दूसरी कत्यूर घाटी को मिलेगी नई पहचान

संवाद सहयोगी, रानीखेत : बैजनाथ गरुड़ (बागेश्वर) के बाद में पर्यटन नगरी से दूर तिपौला सेरा में गुमनाम कुमाऊं की दूसरी कत्यूर घाटी को अब पर्यटन मानचित्र में नई पहचान मिल सकेगी। क्षेत्रवासियों, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इकाई व पर्यटन विभाग की मिलीजुली पहल रंग लाई तो बहुत जल्द कत्यूरकालीन सभ्यता संस्कृति का गवाह यह स्थल 'जंगल एंड वैली टूरिज्म' के रूप में 'फ्लोरा एंड फोना' की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। खास बात कि बहुत जल्द पुरातत्व इकाई की टीम भी तिपौला सेरा स्थित कत्यूर राजवंशीयों की कुलदेवी जियारानी की यादों को सहेजे अद्भुत कलाकृतियों वाली घाटी का दौरा करेगी। पुरातत्व इकाई कत्यूरकालीन इस स्थल का दौरा कर पहल करेगी। वहीं ब्लॉक मुख्यालय इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव बनाने जा रहा।

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प्रकृति की गोद में है जियारानी की विश्राम स्थली

हिमालयी राज्य के मध्ययुगीन सूर्यवंशी कत्यूरी राजाओं ने कुमाऊं में छठी से 12वीं सदी तक सशक्त शासन चलाया तो स्थापत्य कला को भी जन्म दिया। शिव शक्ति के उपासकों ने साम्राज्य विस्तार के साथ अपनी अनूठी शिल्प कला को कत्यूर शैली के रूप में पहचान दिलाई। लोकगाथाओं व 'कुमाऊं के इतिहास' पर गौर करें तो कत्यूर वंश की वीरांगना राजमाता जियारानी चित्रेश्वर (चित्रशिला रानीबाग हल्द्वानी) जाते वक्त अपने वीर सैनिकों के साथ कुछ दिन नैनीताल व अल्मोड़ा जनपद की सीमा पर कोसी से सटी कुजगढ़ घाटी के तिपौला सेरा में ठहरी थी। यहां 7वीं सदी में ग्रेनाइट पत्थर पर उकेरी गई भगवान शिव, ब्रह्मा व शक्ति स्वरूपा मां की मूर्तियां आज भी धरोहर के रूप में मौजूद हैं। मगर अब स्थानीय बाशिंदों व प्रमुख रचना रावत की पहल के बाद इस गुमनाम क्षेत्र के दिन बहुरने की उम्मीद जगने लगी है।

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सदाबहार हैं जुड़वा जलस्रोत

लोकगाथा के मुताहिबक वीरांगना जियारानी ने खुद व सेना की प्यास बुझाने के लिए सूखी धरा पर कटार मारी। गहरी चोट के कारण जमीन के भीतर से दो जलस्रोत फूट पड़े। माता जियारानी के मंदिर से चंद कदम दूर ये दोनों स्रोतों का जलप्रवाह भीषण गर्मी में भी समान रहता है।

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'तिपौला सेरा में माता जियारानी व कत्यूरकालीन स्थापत्य कला की स्मृतियां हमारी धरोहर हैं। पूरी घाटी को फ्लोरा एंड फोना की तर्ज पर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके, पुरातत्व इकाई, पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन के लिए प्रस्ताव तैयार कर रहे।

- रचना रावत, ब्लॉक प्रमुख ताड़ीखेत'

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'तिपौला सेरा का जल्द ही दौरा कर संभावनाएं तलाशेंगे। मंदिर व कत्यूरकालीन मूर्तियों को संरक्षित किया जा सकता है या नहीं, यह भी देखेंगे। क्षेत्रवासी दिलचस्पी दिखाएंगे तो पर्यटन गतिविधियों के लिए हम सिफारिश करेंगे।

- चंद्र सिंह चौहान'

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'जल्द स्थलीय निरीक्षण करेंगे। स्थानीय ग्रामीणों, ब्लॉक मुख्यालय से भी प्रस्ताव मांगेंगे। ताकि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा जा सके।

- राहुल चौबे, जिला पर्यटन अधिकारी'


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