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पाकिस्तान व अफगानिस्तान में बसे गुर्जरों के न्यौते पर बढ़े कदम

जगत सिंह रौतेला, द्वाराहाट भारतीय इतिहास के पन्नों में 5वीं शताब्दी से दर्ज गुर्जर का अतीत ग

By JagranEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 11:14 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 11:14 PM (IST)
पाकिस्तान व अफगानिस्तान में बसे गुर्जरों के न्यौते पर बढ़े कदम
पाकिस्तान व अफगानिस्तान में बसे गुर्जरों के न्यौते पर बढ़े कदम

जगत सिंह रौतेला, द्वाराहाट

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भारतीय इतिहास के पन्नों में 5वीं शताब्दी से दर्ज गुर्जर का अतीत गौरवशाली रहा है। इतिहासकारों की मानें तो युद्धकला में महारत गुर्जरों ने 12वीं शताब्दी तक पूरे भारत में राज किया। गुर्जर प्रतिहार वंश ने 600 वर्षो तक अरब के इस्लामिक सैनिकों को अपनी मातृभूमि के करीब फटकने तक नहीं दिया। 12वीं सदी में वंश के पतन के साथ भारत से बाहर तक राज करने वाले गुर्जर लड़ाकों का कालांतर में धर्मपरिवर्तन कर दिया गया। खास बात कि 21वीं सदी में पाकिस्तान व अफगानिस्तान में सदियों से बसे गुर्जर अपने गौरवशाली अतीत को याद कर रगों में दौड़ रहा भारतीय खून फड़फड़ा रहा। यही वजह है कि उन्होंने भारत वर्ष के गुर्जरों को गजनी पहुंचने का न्यौता दिया है।

मातृभूमि और अपनी कौम के लिए जान की बाजी लगा देने वाले गुर्जरों की अंतरराष्ट्रीय यात्रा का मकसद अखंड भारत के गौरवशाली इतिहास को पुन:स्थापित करना है। देवभूमि से शुरू यह यात्रा पूरे उत्तर भारत से जम्मूकश्मीर, फिर पुंछ बॉर्डर से पाकिस्तान में प्रवेश करेगी। यहां से अखंड भारत गुर्जर महासभा की पताका लिए यात्री दल गजनी (अफगानिस्तान) स्थित शूरवीर पृथ्वीराज चौहान की समाधि पर पुष्प अर्पित करेगी।

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पाकिस्तान व अफगानी गुर्जरों में उत्साह

महासभा की मानें तो इस यात्रा से पाकिस्तान व अफगानिस्तान में बस चुका गुर्जर समाज धर्म परिवर्तित होने के बावजूद खासा उत्साहित है। महासभा अध्यक्ष कर्नल देवानंद सिंह लोहमरोड़ कहते हैं, बीते वर्ष राजस्थान में आरक्षण के लिए गुर्जर आदोलन चला। इसमें पाकिस्तान व अफगानिस्तान से भी गुर्जर पहुंचे। कर्नल देवानंद सिंह के मुताबिक तभी गुर्जर गौरव यात्रा का मसौदा तैयार हुआ। उन्हीं के न्यौते पर यात्रा शुरू की गई है। केंद्र सरकार को सूचना दे दी गई है।

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गुर्जरों से जुड़े इतिहास में की गई छेड़छाड़ : इतिहासकार वर्मा

गुर्जर इतिहासकार मोहन लाल वर्मा की मानें तो भारत के इतिहास में बड़ी छेड़छाड़ की गई है। इससे गुर्जरों का वैभवशाली इतिहास प्रभावित हुआ है। कहा कि पूर्व में गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य का जिक्र इतिहास की किताबों में था। मगर अब गुर्जर शब्द हटवा दिया गया है। मात्र प्रतिहार वंश या साम्राज्य पढ़ाया जा रहा। गुर्जर महासभा ऐतिहासिक महत्व वाले तथ्यों को पाठ्यक्रमों में पुन: जोड़े जाने को भी संघर्ष तेज करेगा। इतिहासकार वर्मा कहते हैं, वर्तमान में गुर्जर समाज को हेय दृष्टि से देखा जाता है जबकि गुर्जर अतीत में कुशल योद्धा रहे हैं। यात्रा का उद्देश्य विभिन्न उपजातियों व संप्रदायों में बंटे गुर्जरों को एकजुट कर अखंड भारत निर्माण में हाथ बंटाना है।

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द्वाराहाट में भी बनेगा कुलदेव नारायण का मंदिर

महासभा के संयोजक व इतिहासकार मोहन लाल वर्मा ने दावा किया कि 9वीं व 10वीं शताब्दी में प्रतिहार शासन के अवसान के बाद भारत अनेक राजशाही शासन में बंटा था। उसी के अनुरूप उत्तराखंड में कत्यूरी शासन की नींव पड़ी। गुर्जरों के पूज्य देव नारायण भगवान (11 कलाओं से परिपूर्ण) के मंदिर देश में हजारों हैं। मगर द्वितत्व के प्रतीक द्वाराहाट में लंबे अध्ययन बाद चौथे धाम की पुष्टि की गई है। उन्होंने उत्तराखंड के कलेक्टर की 1989 में प्रकाशित रिपोर्ट को भी आधार बताया। कहा, द्वाराहाट में भी भगवान देवनारायण का मंदिर स्थापित करेंगे।


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