सोमनाथ मेले में सजीव हो उठी गौरवशाली परंपरा
संवाद सहयोगी चौखुटिया कुमाऊं के प्रमुख मेलों में शुमार मासी के पौराणिक व ऐतिहासि
संवाद सहयोगी, चौखुटिया : कुमाऊं के प्रमुख मेलों में शुमार मासी के पौराणिक व ऐतिहासिक सोमनाथ के मुख्य मेले में उत्तराखंड की गौरवशाली परंपरा व संस्कृति का बेजोड़ संगम देखने को मिला। नगाड़े-निशानों के बीच रणसिंग की गर्जना व बीर रस की हुंकार के बीच कनौणी व मासीवाल ऑल के ग्रामीणों ने रामगंगा नदी में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटने की रस्म अदा की। इसके साथ ही मेले की उमंग बैशाख के सोमवार की दोपहरी के साथ ही परवान चढ़ गई। चार बजे के आसपास मेला स्थल पर कौतिक्यारों की भीड़ जुट आई। इस दौरान लोगों ने झोड़ा गायन, भगनौल व श्रंगार नृत्य का आनंद लिया।
मासी में सोमनाथ का मुख्य मेला प्रतिवर्ष बैशाख माह के प्रथम सोमवार को लगता है। जो पूरे सात दिनों तक चलता है। भक्ति व बीर रस से ओतप्रोत सोमनाथ का मुख्य मेला 13 मई को संपन्न हुआ। कौतिक में क्षेत्र की पौराणिक गौरवशाली परंपरा व संस्कृति जीवंत हो उठी। दोपहर बाद मासी के पास रामगंगा नदी के आर पार बसे दो ऑल क्रमश: मासीवाल व कनौणी ऑल के ग्रामीण नगाड़े-निशान व गाजे-बाजे के साथ मेला स्थल की ओर पहुंचे। मेले में उत्साह, उमंग, आस्था व परंपरा का बेजोड़ संगम देखने को मिला।
-------------------------------
जोश खरोश से मासीवाल ऑल ने पहले भेंटा ओड़ा
मासी सोमनाथ मेले में सदियों से ओड़ा भेंटने की परंपरा चली आ रही है। इसमें बारी बारी से यह रस्म अदा की जाती है। इस बार मासीवाल ऑल के ग्रामीणों ने पूरे जोश खरोश में पहले दौड़ लगाकर नदी में पत्थर मारकर ओड़ा भेंटा।
----------------------------
अलग अलग स्थानों पर ओड़ा भेंटा जाता है
पूर्व से ही ओड़ा भेंटने के लिए स्थान निर्धारित हैं। मासीवाल ऑल के ग्रामीण रामदास स्थल के पास रामगंगा नदी में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटते हैं। वहीं कनौणी के ग्रामीण पन्याली के पास निर्धारित स्थान पर नदी में पत्थर मारते हैं। मेले में मासी, कनरै, ऊंचावाहन, चौना, डांग, कोटयूड़ा, कनौणी, आदिग्राम कनौणी आदि गांवों के लोग नगाड़े निशान व गाजे बाजे के साथ पहुंचते हैं।
------------------------------
रात के सल्टिया मेले में दिखा लोक विधाओं का संगम
सोमनाथ के मुख्य मेले के पहले दिन रविवार की रात सल्टिया मेला लगा। इसमें सल्ट से एक जोड़ी नगाड़े-निशानों के साथ ग्रामीणों ने परंपरा के अनुसार भागीदारी निभाई। देर सायं तक मासी नगरी पारंपरिक लोकविद्या यथा भगनौल, चांचरी व झोड़ा गीतों के सुमधुर स्वरों से गूंज उठा। सल्टिया मेला सोमनाथ मेले का ही एक भाग है।