गांवों में डोली के सहारे, बीमार लोगों की जिंदगी
संवाद सहयोगी चौखुटिया यूं तो अलग उत्तराखंड राज्य बन जाने के उपरांत अनेक गांव सड़क सुवि
संवाद सहयोगी, चौखुटिया: यूं तो अलग उत्तराखंड राज्य बन जाने के उपरांत अनेक गांव सड़क सुविधा से जुड़ गए हैं, लेकिन आज भी ऐसे कई गांव हैं, जो मोटर मार्ग के लिए भारी जद्दोजहद कर रहे हैं। बीमार लोगों को सड़क तक लाने के लिए ऐसे गांवों के ग्रामीणों के लिए डोली ही एक मात्र मात्र सहारा है। कठिन पहाड़ी रास्तों के चलते जो जोखिम भरा भी है। 21वें सदी की ऐसी ही कुछ तस्वीर बमनगांव व नौगांव-अखोड़िया के कई दूरस्थ गांवों की है। जहां के लोगों के लिए सड़क आज भी सपना बना है।
विकास खंड अंतर्गत ग्राम पंचायत बमनगांव के तो दरमाण, मटियागाड़, डबरिया, पुरिया गजार व बमनगांव समेत नौगांव अखोड़िया के दूरस्थ गांव बसीगाड़, द्वारछिना, सीमापानी व कन्यूरी गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं। आज भी यहां के ग्रामीणों को 4 से 8 किमी की दूरी पैदल ही नापनी पड़ती है। वह भी कठिन पहाड़ी रास्तों से। राशन समेत तमाम घरेलू सामान सिर में रखकर ले जाना उनकी मजबूरी है। गांवों में किसी के बीमार हो जाने पर उसे डोली में बिठाकर सड़क तक पहुंचाने के लिए ग्रामीण विवश हैं। पहाड़ी रास्ता होने के कारण यह जोखिम भरा भी है।
ग्रामीणों का कहना है कि वे लंबे समय से सड़क के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन आज तक निराशा ही हाथ लगी। इतना जरूर है कि वर्ष 2009-10 में 12 किमी सड़क के लिए सर्वे की गई, लेकिन तब से अब तक मामला जस का तस बना है। ऐसे में जन प्रतिनिधियों के प्रति भी लोगों में गुस्सा है। पूर्व प्रधान दीवान सिंह किरौला, जगदीश चंद्र जोशी, मदन राम आर्य, मंगल फुलारा, बालम सिंह, चंदन सिंह आदि ने गांवों को सड़क से जोड़ने की मांग की है।
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सड़क न होने से बढ़ा गांवों से पलायन
ग्रामीण लंबे समय से गांवों को सड़क से जोड़ने की मांग कर रहे हैं, लेकिन किसी ने भी उनकी आवाज नहीं सुनी। आल हालत यह हो गई है कि गांवों से तेजी से पलायन बढ़ रहा है। बमन गांव व पुरिया गतार समेत कई तोक गांवों में महज 2-3 परिवार ही रह गए हैं। पूर्व प्रधान जगदीश जोशी का कहना है कि यदि अभी भी इन गांवों को सड़क से नहीं जोड़ा गया तो अधिकांश गांव खाली हो जाएंगे।