दाने- दाने को तरस रहा राजेंद्र का परिवार
बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा बूढ़ी सास दमे की बीमारी से पिछले दस साल से बिस्तर में पड़ी हुई है
बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा
बूढ़ी सास दमे की बीमारी से पिछले दस साल से बिस्तर में पड़ी हुई है। ससुर उम्र के इस पड़ाव में कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। देवर भी अक्सर बीमार रहता है तो देवरानी शारीरिक रूप से विकलांग है। पति की मौत के सदमे से वह उबर नहीं पा रही है, लेकिन तीन मासूम बेटियों को भूख से बिलखते देखना भी उसके लिए मुश्किल भरा साबित हो रहा है। नियति को कोस तो रही है, लेकिन फिर भी सीने पर पहाड़ सा पत्थर रखकर जैसे तैसे अपने बहते आंसुओं को संभालना उसकी मजबूरी बन गई है।
हम बात कर रहे हैं भैंसियाछाना ब्लॉक के नौगांव ग्राम सभा के तोक ढैलाछानी तोक निवासी नीमा देवी की। बीते ग्यारह दिसंबर को उसका पति राजेंद्र सिंह (35) जंगल में लकड़ी काटने गया था। अचानक वह पेड़ की चपेट में आ गया और उसकी मौत हो गई। राजेंद्र घर का अकेला कमाऊ सदस्य था। इतने बड़े परिवार को पालने की जिम्मेदारी उसके ही कंधों पर थी। इसलिए वह दिन भर कड़ी मेहनत कर जितना कमा कर लाता उससे ही जैसे तैसे परिवार का गुजर बसर हो रहा था, लेकिन राजेंद्र की मौत के बाद अब इस परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया है। एक तरफ राजेंद्र की मौत का सदमा ऊपर से आर्थिक संकट। हालत यह है कि घर में अनाज का एक दाना न होने के कारण पिछले पांच दिनों से चूल्हा ही नहीं जला है। मासूम बेटियों किरन (14), पूजा (5) और कमला (3) को तो तीन दिन एक निवाला भी नसीब नहीं हुआ। हालत देख आसपास के लोगों ने एक दो दिनों से खाना बनाकर देना शुरू भी किया तो अब नीमा उसे अपनी मासूम बेटियों और सास ससुर को खिला रही है, लेकिन इस तरह कैसे और कब तक अपने परिवार को पाला जाएगा यह चिंता नीमा को खाए जा रही है। गांव वालों की आंखे भी इस परिवार की हालत देख कर नम हो जा रही हैं। जितनी मदद हो सकती है वह कर रहे हैं, लेकिन इस परिवार पर आए मुसीबतों के पहाड़ से वह भी काफी गमगीन हैं।
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आसपास के लोग एकत्र कर रहें चंदा
आर्थिक रूप से कमजोर इस परिवार की हालत आसपास के लोगों से देखी नहीं गई तो अब उन्होंने इस दुखी परिवार के लिए चंदा एकत्र करना शुरू कर दिया है। गांव के लोग अपना काम काज छोड़ आसपास के बाजारों, गांवों और सम्पन्न परिवारों के पास जा रहे हैं और इस परिवार की मदद की अपील लोगों ने कर रहे हैं।