अल्मोड़ा जेल में जिंदा हैं पं. जवाहर लाल नेहरू की यादें
अल्मोड़ा जेल में पं. जवाहर लाल नेहरू की यादें जिंदा हैं। नेहरू ने अंग्रेजों की यातना के तौर पर दो अवधि में 317 दिन की सजा काटी थी।
अल्मोड़ा [डीके जोशी]: जिन रणबांकुरों ने स्वतंत्रता के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी और हमें खुली हवा में सांस लेने की आजादी दिलाई हम उन्हें और उनसे जुड़ी यादों को कैसे भुला सकते हैं। अल्मोड़ा जेल भी इसी बात की गवाह है, जहां आजादी के नायक व देश के पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों की यातना के तौर पर दो अवधि में 317 दिन की सजा काटी थी। जेल में भी आजादी के प्रति उनका जोश कम नहीं हुआ। उन्होंने यहीं से देशवासियों में स्वतंत्रता की अलख जगाई। पं. नेहरू ने जेल में रहकर जिस चारपाई, कुर्सी, मेज व बर्तनों का उपयोग किया, उन्हें जेल ने यादों के रूप में संजोकर रखा है।
भारत की आजादी की लड़ाई में पं. जवाहर लाल नेहरू के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। सन् 1930 के आसपास देशवासी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए बेताब थे। चाचा नेहरू भी आजादी की लड़ाई में पूरी तरह कूद पड़े। इसी के तहत जगह-जगह आंदोलन व विरोध होने लगा था। इससे तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत बौखला उठी। पं. नेहरू की गतिविधियों को देख उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 16 फरवरी 1934 को कलकत्ता के सिटी मजिस्ट्रेट एसआर सिन्हा ने उन्हें भारतीय दंड विधान की धारा 124-ए के तहत दो वर्षो की साधारण कारावास की सजा सुना डाली। 28 अक्टूबर, 1934 को उन्हें अल्मोड़ा जेल लाया गया। बाद में सरकार के आदेश पर 3 सितंबर, 1935 को रिहा किया गया।
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जेल में है नेहरू वार्ड
आजादी के दौर में देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एतिहासिक अल्मोड़ा जेल में दो बार सजा काटी। अन्य बंदियों के भी आंदोलित होने की वजह से अंग्रेज अधिकारियों ने जेल में भी उन्हें अलग बैरक में रखा। वर्तमान में इसे जेल प्रशासन ने नेहरू वार्ड नाम दिया है।
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