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शिक्षा के गढ़ से 'एकात्म मानव' वाले भारत का शंखनाद

अल्मोड़ा में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसका शुभारंभ बीजेपी के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने किया।

By raksha.panthariEdited By: Published: Sat, 04 Nov 2017 08:05 PM (IST)Updated: Sat, 04 Nov 2017 10:49 PM (IST)
शिक्षा के गढ़ से 'एकात्म मानव' वाले भारत का शंखनाद
शिक्षा के गढ़ से 'एकात्म मानव' वाले भारत का शंखनाद

अल्मोड़ा, [जेएनएन]: जनसंघ के गुरु एवं कुशल संगठक पं.दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती पर राष्ट्रीय कार्यशाला के जरिए शिक्षा, संस्कृति व बुद्धिजीवियों की नगरी से 'एक चैतन्य एक आत्मा' यानी एकात्म मानववाद वाले भारत वर्ष का शंखनाद हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के रणनीतिकारों ने पं.दीनदयाल के देशभक्ति पर आधारित 'दैशिक शास्त्र' पर गहन चिंतन किया। इशारों में संघ विचारकों ने धर्म प्रधान भारत वर्ष को परम वैभव का शिखर प्रदान करने के लिए बाकायदा राष्ट्रवाद की पुरजोर पैरवी की। जिसमें पूरी दुनिया को एकात्म मानववाद की कड़ी से जोड़ा जाता है। 

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सांस्कृतिक नगरी में उत्तराखंड सेवा निधि सभागार में शनिवार को एकात्म मानव दर्शन एवं दैशिक शास्त्र के संदर्भ में 'एक अक्षय, एकात्म और समग्र विकास के लिए दिशा बोध' विषयक दो दिनी कार्यशाला और व्याख्यानमाला का शुभारंभ मुख्य अतिथि वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने पं.दीनदयाल के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर किया।

इस दौरान उन्होंने भारतीय दर्शनशास्त्र को विश्व में विशिष्ट करार दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम व कम्युनिस्ट की विचारधारा से इतर संघ 'ह्यूमेनिस्ट' मानववाद को मानता है। यानी संघ की दृष्टि में पूरा विश्व एक कुटुंब है। उन्होंने पं.दीनदयाल के एकात्म मानववाद की सोच को वैदिक संस्कृति से ओतप्रोत बताया। उन्होंने पं. दीनदयाल के राष्ट्रवाद की पुरजोर वकालत भी की। 

पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने पं.दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद एवं दैशिक शास्त्र पर गहराई से प्रकाश डाला। कहा, राष्ट्रवादी पं. दीनदयाल का समूचा राजकीय चिंतन नैतिकता व धर्म प्रधान रहा। उनकी मान्यता थी कि भारत एक धर्म प्रधान देश है और धर्म उसका प्राण। 

एक वाक्य सूत्र में पिरोने का आह्वान

संघ के अन्य शीर्ष विचारकों ने प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर पं.दीनदयाल के एकात्म मानववाद व 'दैशिक शास्त्र' का उल्लेख कर वैदिक संस्कृति वाले राष्ट्रवाद का ही संदेश दिया। निचोड़ दिया कि भारत वर्ष में एक चेतना व एकात्मा को माना जाता है। उन्होंने पं.दीनदयाल के पूर्णतावादी एकात्मवाद एवं संघवादी होने का हवाला देते हुए वैदिक संस्कृति के प्रवाह को और तेज करने की जरूरत बताई। पं. दीनदयाल के हिंदू राष्ट्रवाद के विवेचन पर चिंतन कर विचारकों ने इस एक वाक्य सूत्र के जरिये संगठित कार्यशक्ति को धर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहने का संदेश भी दिया। 

क्या है दैशिक शास्त्र 

'लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सपनों का भारत' शीर्षक से 1959 में संघ के चिंतक व विचारक पं.दीनदयाल उपाध्याय ने 'दैशिक शास्त्र' के रूप में समीक्षा प्रकाशित की थी। जो पूरी तरह देशभक्ति, राष्ट्रवाद व धर्म प्रधान है।

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