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कैंसर को मात देकर 'शिखर' पर छाया इस युवा का हौसला, जानिए पूरी कहानी

गर हौसले बुलंद हो तो मंजिलें आसान हो जाती है, कोर्इ भी रुकावट आपको रोक नहीं सकती। इन लाइनों को नरिंदर ने साबित कर दिखाया है। कैंसर से हार न मानते हुए कर्इ चोटियों को फतह किया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 02:01 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 09:30 PM (IST)
कैंसर को मात देकर 'शिखर' पर छाया इस युवा का हौसला, जानिए पूरी कहानी
कैंसर को मात देकर 'शिखर' पर छाया इस युवा का हौसला, जानिए पूरी कहानी

रानीखेत, [दीप सिंह बोरा]: जिंदादिल इंसान के शरीर को बीमारी कमजोर तो कर सकती है, मगर उसके हौसले को तोड़ नहीं सकती। कामयाबी के नित नए शिखर छूने का जज्बा लिए युवा नरिंदर सिंह की दास्तां कुछ ऐसी ही है। बीते वर्ष 36 साल की उम्र में उसे लीवर कैंसर ने घेर लिया। पर वह टूटा नहीं, इलाज कराया और लगातार योग किया। जोखिम उठाने में माहिर इस खिलाड़ी ने खुद पर कैंसर को हावी नहीं होने दिया। 

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यहां बात हो रही कुरुक्षेत्र के शाहाबाद के छोटे से बीबीपुर गांव (हरियाणा) के नरिंदर सिंह की। देश दुनिया में वह तब सुर्खियों में आए थे जब 2011 में एवरेस्ट पर एक घंटा बिताने का विश्व रिकॉर्ड बनाया। मगर सितंबर 2017 में उन्हें लीवर कैंसर ने चपेट में ले लिया। तब उसने एवरेस्ट को दूसरी बार फतह करने के लिए कैंसर को हराने की जिद पकड़ ली। दिल्ली में इलाज के साथ निरोग बनने को रोज योग किया। डॉक्टर ने सालभर तक साहसिक पर्यटन की सभी गतिविधियां बंद करने की सलाह दी। मगर इस जीवट ने छह माह में ही कैंसर को मात देकर एक नए जोश के साथ जिंदगी की एक नई पारी शुरू कर दी है। वो कहते हैं कि योग ने तन एवं मन को ऐसी शक्ति दी कि सारी कमजोरियां धीरे-धीरे दूर होती गई। 

अब चीन की तरफ से फहराएंगे एवरेस्ट पर तिरंगा 

स्वस्थ भारत के ब्रांड एंबेसडर नरिंदर ने खास बातचीत में बताया कि कैंसर को हराने के बाद अब उनका अगला लक्ष्य चीन की तरफ से एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराना है। नरिंदर कहते हैं कि पत्नी रेखा ने जीने की राह दिखाई। पर्वतारोही लवराज धर्मशक्तू ने सफलता की चोटी छूना सिखाया, तो साहसिक पर्यटन के जानकार ललित बिष्ट उनके लिए बेस्ट मोटिवेटर हैं। उन्होंने ही हौसले व सकारात्मक सोच लेकर आगे बढ़ने की सीख दी। 

पैदल यात्रा कर लोगों को करेंगे जागरूक 

दो बार अंडर वॉटर साइकिलिंग व समुद्र के भीतर खारे पानी के खतरे को नजरअंदाज कर फलाहार का एशियन रिकॉर्ड तथा लिम्का व इंडिया बुक में पांच बड़े राष्ट्रीय रिकॉर्ड दर्ज करा चुके नरिंदर जल्द ही सियाचिन से दिल्ली तक 1270 किमी पैदल यात्रा करेंगे। 22 दिनी इस सफर में वह लोगों को कैंसर के प्रति जागरूक करेंगे और हिमालय बचाने को सबसे आगे आने का आह्वान भी।  

पहाड़ की आबोहवा में प्राणायाम 

रानीखेत से करीब 34 किमी दूर करीब समुद्रतल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्याहीदेवी से 2004 में नरिंदर ने यूरेका एडवेंचर कैंप से करियर शुरू किया। इलाज के दिनों में कैंप इंचार्ज ललित ने कहा, करियर के शुरूआती उमंग भरे दिनों की याद रोग से लड़ने की नई ऊर्जा व ताकत देगी। इसलिए स्याहीदेवी आओ। यही वजह है कि नरिंदर जीवनसाथी रेखा, बेटा व बेटी के साथ शुद्ध हवा में योगाभ्यास कर सुकून भरे दिन बिता रहे हैं। 

हरियाणवी हौसले की उपलब्धियों पर एक नजर 

साल 2013: वर्ल्ड रिकॉर्ड्स यूनिवर्सिटी से बगैर ऑक्सीजन एवरेस्ट में एक घंटा बिताने पर डॉक्टरेट की मानद उपाधि। 

साल 2016: ग्रैंड आइसलैंड गोवा, फिर 2017 में नेतरानी आइसलैंड कर्नाटक में समुद्र की सतह पर साइकिल चला एशियन रिकॉर्ड बनाया। एशिया बुक व लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज। 

= नेशनल एडवेंचर क्लब ऑफ इंडिया ने भारत गौरव अवार्ड 

= 2008 में हरियाणा सरकार ने राज्यपाल अदम्य साहस पुरस्कार दिया 

= 2012 : यूरोप के सर्वोच्च शिखर माउंट एलबुस पर तिरंगा फहराया। 

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