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उपेक्षा का दंश झेल रहा संगीत महाविद्यालय

सांस्कृतिक नगरी में शास्त्रीय संगीत की विभिन्न विधाओं को सिखाने के लिए शुरू किया गया भातखंडे संगीत महाविद्यालय उपेक्षा का शिकार हो गया है। यहां संगीत घरानेदार प्रवक्ता ही तैनात हैं न ही तबला लोक संगीत आदि विधाओं को बढ़ाया गया है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Dec 2021 05:23 PM (IST)Updated: Mon, 06 Dec 2021 05:23 PM (IST)
उपेक्षा का दंश झेल रहा संगीत महाविद्यालय
उपेक्षा का दंश झेल रहा संगीत महाविद्यालय

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : सांस्कृतिक नगरी में शास्त्रीय संगीत की विभिन्न विधाओं को सिखाने के लिए शुरू किया गया भातखंडे संगीत महाविद्यालय उपेक्षा का शिकार हो गया है। यहां संगीत घरानेदार प्रवक्ता ही तैनात हैं न ही तबला, लोक संगीत आदि विधाओं को बढ़ाया गया है।

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वर्ष 1988 में चार कमरों से भातखंडे संगीत महाविद्यालय शुरू किया गया। इसमें गायन, सितार व कत्थक की कक्षाओं का संचालन किया गया। तत्कालीन उत्तर प्रदेश में इस विद्यालय में घरानेदार शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ अध्यापक छात्रों को भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने के लिए तैनात किए गए। महाविद्यालय की ओर न तो सरकार के नुमाइंदों ने कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही अधिकारियों ने इसके उत्थान के लिए कोई कार्य किया। 33 वर्षो में न तो यहां पर तबला, लोक संगीत आदि अन्य विधाओं को बढ़ाया गया। राज्य बनने के बाद से यहां प्रवक्ताओं व कर्मचारियों की लगातार कमी बनी रही। 29 स्वीकृत पदों के सापेक्ष केवल आठ पद भरे

भातखंडे संगीत महाविद्यालय में स्वीकृत 29 पदों के सापेक्ष वर्तमान में मात्र आठ कर्मचारी कार्यरत है। जिनमें से तीन अनुसेवक है। वहीं एक कनिष्ठ कत्थक प्रवक्ता, एक कनिष्ठ भरतनाट्यम प्रवक्ता, दो तबला संगतकर्ता हैं। एक वरिष्ठ सहायक को नैनीताल से संबद्ध किया गया है। विद्यालय संचालन को संग्रहालय के प्रभारी को प्रभार दिया गया है। सात लोगों को आउटसोर्स के माध्यम से रखकर किसी तरह विद्यालय को चलाया जा रहा है। वर्तमान में इस विद्यालय को अपना भवन तो दे दिया गया, लेकिन न तो घरानेदार प्रवक्ताओं की भर्ती की गई और न ही इस विद्यालय में कोई प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया गया।

भातखंडे संगीत विद्यालय में ये पद है रिक्त

भातखंडे संगीत महाविद्यालय में गायन, सितार, कथक के प्रवक्ता के पद खाली है। वहीं सारंगी, लोक नृत्य, लोक वाद्य, मृदंग, गायन भरतनाट्यम के संगतकर्ता भी नहीं है। प्रशासनिक कर्मचारियों की बात करें तो वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, लेखाकार भी विद्यालय में नहीं है। प्रवक्ताओं की कमी दूर करने के लिए शासन को पत्र भेजा गया है। कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए भी कार्य किया जा रहा है। अल्मोड़ा में तबले का संकाय खोलने के लिए प्रस्ताव मांगा गया है। उसे जल्द खोल दिया जाएगा।

- बीना भट्ट, निदेशक, संस्कृति विभाग उत्तराखंड


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