अध्यात्म को अभ्यास की जरूरत नहीं: मोरारी बापू
कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि अध्यात्म को अभ्यास की जरूरत नहीं होती। हमें साधु को बार-बार प्रणाम करना चाहिए।
अल्मोड़ा, [जेएनएन]: श्री कल्याणिका डोल आश्रम में चौथे दिन की श्रीराम कथा सुनाते हुए कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि अध्यात्म को अभ्यास की जरूरत नहीं होती। हमें साधु को बार-बार प्रणाम करना चाहिए। निंदा करने वाला उस तरह होता है जैसे मां के पेट से पत्थर पैदा हो गया हो। बापू ने कहा कि देश में भजन कीर्तन प्रवाह की परंपरा बनी रहनी चाहिए। श्रीराम कथा का दिन व नक्षत्र सब पहले से ही तय होता है।
मोरारी बापू ने कथा को आगे बढ़ाते हुए सीता नवमी की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मां सीता के प्रकट होने का दिन है। केवल सिय बोलने मात्र से ही श्री प्रकट हो जाती हैं। सिय और श्रीराम को मिलाकर बोलने से ही सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। देश में भजन व कीर्तन की पुरातन परंपरा बनी रहनी चाहिए।
यह त्याग व वैराग्य के दिव्य खंभों पर देश की नींव टिकी है। मोरारी बापू ने कहा कि गंगा का स्पर्श, स्नान करना व इसके जल को पीना जहां लाभदायक है। वहीं यदि यही जल बर्फ बन जाए तो कपड़े को फाड़ सकता है। उन्होंने कहा कि बलवान साधु को हमेशा ही प्रणाम करना चाहिए। इसका अनादर कदापि न करें। यह हमारी परंपरा और संस्कृति है। माता सीता ही मानस की श्री हैं। यह आदि शक्ति भी हैं।
यह भी पढ़ें: चिदानन्द सरस्वती महाराज और मोरारी बापू ने अध्यात्म पर की चर्चा
यह भी पढ़ें: दया और करुणा के प्रसार से ही विश्व शांति संभव: स्वामी चिदानंद