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हिमालयी राज्य में वनाग्नि नियंत्रण को बने दीर्घकालीन नीति

पृथ्वी का एक हिस्सा वनों से आच्छादित है। अब हिमालय राज्यों में वनाग्नि नियंत्रण के लिए दीर्घकालीन नीतियों की जरूरत है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 10:43 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jun 2020 06:17 AM (IST)
हिमालयी राज्य में वनाग्नि नियंत्रण को बने दीर्घकालीन नीति
हिमालयी राज्य में वनाग्नि नियंत्रण को बने दीर्घकालीन नीति

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा: पृथ्वी का एक हिस्सा वनों से आच्छादित है। जैव विविधता से लबरेज यही क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र को जिंदा रखे है। यही जैवविविधता मानव जगत को करोड़ों की पर्यावरणीय सेवाएं भी दे रही। मगर जंगलात के संरक्षण में समस्याओं के साथ कई चुनौतिया भी हैं। वनाग्नि सबसे बड़ी चुनौती है। इससे निपटने को दीर्घकालीन नीति तैयार कर जमीनी स्तर पर काम करने की सख्त जरूरत है।

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ये विचार ई- बैठक के जरिये पर्यावरणविदों व वैज्ञानिकों ने गहन चर्चा के दौरान कही। वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं पर चिंतित वैज्ञानिकों ने कहा, इन्हें हर हाल में रोकना होगा। तभी पृथ्वी सुरक्षित रहेगी। हिमालयी राज्य में बढ़ती वनाग्नि पर पर्यावरणविदों ने कई अहम सुझाव दिए। संचालन कर रहे दिल्ली विवि की मलिका पाडेय व कॉनकाíडया विवि कनाडा के समन्वयक सिद्धार्थ जैन, ग्वायर हॉल दिल्ली के प्रो. आरके शर्मा तथा अध्यक्ष ग्वायर हॉल शिवा श्रीवास्तव, कल्याण सिंह रावत (पद्मश्री 2020), आरबीएस रावत (अवकाश प्राप्त मुख्य वन रक्षक), विजय रावत (सेवानिवृत्त अतिरिक्त महानिदेशक जलवायु परिवर्तन आइसीएफआरई देहरादून) व राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरणीय शोध संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीएस नेगी ने विचार रखे।

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चीड़ के वन बन रहे घातक : पद्मश्री कल्याण

पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा, वन मानव समाज की सामाजिक आíथक एवं पारिस्थितिक व्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मगर बीते दो सौ वर्षो में वनों के प्रति समाज के नजरिए में व्यापक बदलाव आए हैं। इससे वनों का अत्यधिक दोहन हुआ। ब्रिटिश इंडिया के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के व्यापारिक हितों के लिए स्थानीय बाज के वनों के बजाय चीड़ के वन लगाए गए। इसका खामियाजा वनाग्नि के रूप में भुगतना पड़ रहा। वनों में रहने वाले जीवों एवं स्थानीय मानव का जीवन प्रभावित हुआ है।

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वनाग्नि का प्रमुख कारण मानव : डॉ. नेगी

राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान अल्मोड़ा के डॉ. जीएस नेगी ने वनाग्नि के लिए मानवीय गतिविधियों को मुख्य कारण करार दिया। कहा कि जंगलात भूकटाव रोकने, हवा, पानी व तूफान के कारण होने वाली मृदा क्षरण के लिए ढाल का कार्य करते हैं। वहीं विकिरणों, चक्रवात व ध्वनि प्रदूषण से सुरक्षित रखते हैं।

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जंगल कटने से बढ़ी तापवृद्धि : डॉ. रावत

डॉ. विजय विजय राज रावत ने कहा कि मानवीय गतिविधिया विशेषकर जीवाश्म, ईंधनों का दोहन वनों की कटाई और वनाग्नि जैसी गतिविधियों ने इतनी अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य ग्रीन हाउस गैसें उत्सíजत की है कि पृथ्वी व जलवायु के लिए खतरा पैदा हो गया है। इसी से ग्लोबल वाìमग की समस्या उत्पन्न हुई है। जंगलों के दोहन व वनाग्नि की घटनाओं ने पृथ्वी पर गर्माहट बढ़ाई है। जिसके चलते ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है। और पर्वतों पर ग्लेशियर घट रहे हैं। सíदयों में वर्षा कम हो रही है और प्रति दशक दिन-रात गर्म हो रहे हैं। डॉ. आरबीएस रावत ने सरकारों द्वारा किए जाने वाले प्रयास पर अपने विचार रखे उन्होंने बताया कि लोग अपने समाज के प्रति संवेदनशील बने तभी हम अपने हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत कर सतत विकास पर आगे बढ़ सकते हैं उन्होंने बताया कि वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए स्थानीय युवकों, वन पंचायतों को प्रशिक्षण देना व वनाग्नि रहित वन पंचायतों को पुरस्कृत करना और बार-बार होने वाली वनाग्नि की घटनाओं के क्षेत्रों को चिह्नित करना आवश्यक है। परिचर्चा में देश विदेश से लोगों ने भागीदारी की।


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