लखौरी मिर्च के तीखेपन पर लौटते मानसून की दोहरी मार
संवाद सहयोगी, रानीखेत : पहाड़ से उत्तर प्रदेश के शहरों तक अपने तीखेपन के लिए मशहूर ल
संवाद सहयोगी, रानीखेत : पहाड़ से उत्तर प्रदेश के शहरों तक अपने तीखेपन के लिए मशहूर लखौरी मिर्च संकट के दौर से गुजर रही है। उचित बाजार व वाजिब दाम को तरस रही इस मिर्च पर लौटते मानसून की बेरुखी भारी पड़ने लगी है। लगातार बारिश के कारण बिक्री के लिए सुखाई जा रही उपज पर दोहरी मार पड़ने का खतरा बढ़ गया है। वहीं बीते वर्ष स्टॉक की गई मिर्च भी खराब होने के कगार पर है।
विषम भौगोलिक हालात में संसाधनों का अभाव व चौतरफा चुनौतियों से घिरे पहाड़ में जैविक विधि से उगाए जाने वाली लखौरी मिर्च को तंत्र इस बार भी उचित बाजार मुहैया कराने को कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं कर सका है। चार पांच वर्ष पूर्व तक मंडी में यह तीखी मिर्च 400 से 500 रुपये प्रति किलो तक बिकी थी। मगर बीते साल भाव चढ़ने के बजाय 120 रुपये पर औंधे मुंह लुढ़क गया था। इससे किसानों के पास बड़ी मात्रा में स्टॉक रखा ही रह गया। इस बार दाम अच्छे मिलने की उम्मीद लगाए किसानों को लौट रहे मानूसन की बरसात ने चिंता में डाल दिया है। सुखाने रखी तोड़ी गई मिर्च पर बादलों ने खराब होने का खतरा बढ़ा दिया है।
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मैदान में यहां तक थी कभी धाक
काशीपुर (ऊधमसिंह नगर), रामनगर (नैनीताल), मुरादाबाद, बिजनौर, लखीमपुर, खीरी, स्वार, रामपुर, बरेली आदि क्षेत्रों में पहाड़ी लखौरी मिर्च की अलग पहचान थी। मैदानी क्षेत्रों से खरीदार पहाड़ आकर खेतों का ही ठेका कर लेते थे मगर दाम बढ़ाने की बात पर हालात बदल गए हैं।
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ये हैं लखौरी उत्पादक इलाके
बेतालघाट, सल्ट व स्याल्दे के साथ ही ताड़ीखेत ब्लॉक के स्यूं, बैना, गुमटा, जैना, कोटाड़, मनारी, लछीना, मंडलकोट, नौघर, बिल्लेख आदि गांव। यहां प्रतिवर्ष लगभग चार से पाच हजार कुंतल पैदावार होती है।
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उद्यान विभाग से लगी कुछ उम्मीद
अब उद्यान विभाग लखौरी मिर्च के लिए एकीकृत आजीविका परियोजना तथा रामनगर (नैनीताल) के व्यापारियों से संपर्क साध उचित बाजार दिलाने की पहल कर रहा। ताकि घाटे के दौर से गुजर रहे पर्वतीय किसानों को राहत दिलाई जा सके।
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'एकीकृत आजीविका परियोजना के जरिये लखौरी मिर्च को बाजार में उतारने की योजना बना रहे। रामनगर (नैनीताल) के व्यापारियों से भी बात चल रही है। हमारी कोशिश है कि पर्वतीय किसानों की उपज को सीधा रामनगर मंडी तक पहुंचाया जाए। इससे काश्तकारों को अच्छी कीमत मिलेगी और उन्हें प्रोत्साहित भी किया जा सकेगा।
- चौधरी हितपाल सिंह, मुख्य उद्यान अधिकारी'