स्वामी विवेकानंद विश्राम गृह में सुविधाएं नदारद
डीके जोशी अल्मोड़ा युवा संत स्वामी विवेकानंद को पहाड़ की आबोहवा व शांत वादियां इतनी भ
डीके जोशी, अल्मोड़ा
युवा संत स्वामी विवेकानंद को पहाड़ की आबोहवा व शांत वादियां इतनी भायीं कि उन्होंने अपने जीवनकाल में तीन बार सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा का भ्रमण कर यहां युवाओं में नया जोश भरा। तीन बार के पैदल भ्रमण की एक पैदल यात्रा के दौरान जब उन्हें काफी थकान लगी तो वह नगर के ही निकटवर्ती करबला के पास बेहोश होकर गिर पड़े। कहने को तो करबला में ही उनकी स्मृति में स्वामी विवेकानंद स्मारक विश्राम गृह का निर्माण किया गया है, लेकिन उसमें विश्राम करने वाले यात्रियों के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव बना है। जब भी देसी-विदेशी सैलानी पहाड़ का रूख करते है, इस विश्राम स्थल का दीदार करना नहीं भूलते हैं।
अध्यात्मिक महापुरुष स्वामी विवेकानंद को सांस्कृतिक नगरी से बेहद लगाव था। अपने जीवन काल के दौरान उन्होंने तीन बार अल्मोड़ा की पैदल यात्रा की। यहां उन्होंने कई दिनों तक प्रवास किया और अपने प्रवचनों से पहाड़ के लोगों को आध्यात्म की दीक्षा दी। उन्होंने कई स्थानों पर तपस्या की और अलौकिक ज्ञान अर्जित किया। स्वामी विवेकानंद पहली बार 1890 में अल्मोड़ा पहुंचे। यहां स्वामी शारदानंद और स्वामीकृपानंद से उनकी मुलाकात हुई। यहां वह लाला बद्री साह के घर पर रूके। एक दिन वह एकांतवास की चाह में घर से निकल पड़े और कसारदेवी पहुंच गए और वहां की पहाड़ियों की गुफा में कुछ दिनों तक तपस्या की। 11 मई, 1897 में वह दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे। तब वह यहां खजांची बाजार में जन सभा को संबोधित किया। बताया जाता है कि तब यहां पांच हजार लोगों की भीड़ उनके दर्शनों के लिए जमा हुई थी। तब स्वामी जी ने अपने भाषणों में कहा था -यह स्थान हमारे पूर्वजों का स्वप्न स्थान है। कहा जाता है कि दूसरी बार के भ्रमण के दौरान स्वामी जी ने यहां करीब तीन माह तक प्रवास किया। इसके बाद स्वामी विवेकानंद 1898 में तीसरी बार अल्मोड़ा आए। इस बार उनके साथ स्वामी तुरियानंद व स्वामी निरंजनानंद के अलाव कई शिष्य भी शामिल थे। इस बाद उन्होंने सेवियर दंपती का आतिथ्य स्वीकार किया। इस दौरान स्वामी विवेकानंद करीब एक माह की अवधि तक अल्मोड़ा के प्रवास पर रहे।
स्वामी विवेकानंद की स्मृति में यहां अल्मोड़ा -हल्द्वानी मोटरमार्ग के करबला के समीप विवेकानंद स्मारक विश्राम गृह का निर्माण तो किया गया है, लेकिन इसमें गृह जैसी कोई सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं। विश्राम करने वालों के लिए प्यास बुझाने के लिए पेयजल टैंकी तो स्थापित की गई है। लेकिन इसमें पेयजल निकासी के लिए नल की टोंटी ही खराब पड़ी है। अगर किसी राहगीर को यहां विश्राम के दौरान प्यास लग गई तो उसे काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। देर सायं तक विश्राम करने वालों के लिए तो यहां बिजली जैसी कोई सुविधा नहीं हैं। विश्राम गृह परिसर की साफ सफाई के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
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विश्राम गृह में सुविधाएं विकसित हो
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व प्रदेश मंत्री लोकेश कालाकोटी का कहना है कि जिस युवा संत को अल्मोड़ा से बेहद लगाव था, उनके नाम से स्थापित विश्राम गृह में सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए। इसके लिए तत्परता से उपाय किए जाने चाहिए। जिससे अल्मोड़ा में पहुंचने वाले पर्यटक अल्मोड़ा से बेहतर संदेश लेकर लौटे। जिससे उनके अनुयायियों समेत यहां पहुंचने वाले लोगों को किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़े।