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चाइनीज चकाचौंध पर भारी स्वदेशी नग व मोती जड़े सूत की डोर

चीन ने बेशक देश के इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रिक बाजार में कब्जा जमाया हो।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 11:41 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 06:15 AM (IST)
चाइनीज चकाचौंध पर भारी स्वदेशी नग व मोती जड़े सूत की डोर
चाइनीज चकाचौंध पर भारी स्वदेशी नग व मोती जड़े सूत की डोर

संस, अल्मोड़ा: चीन ने बेशक देश के इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रिक बाजार में कब्जा जमाया हो। मगर भाई बहन के प्रेम से जुड़ा त्योहार रक्षाबंधन पर बनने वाली राखी के मामले में वह पहाड़ के कारोबारियों व ग्राहकों को बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं कर सका है। चाइनीज लाइट लगी घड़ी वाली या टेडीबियर राखियां कीमती हैं पर नाजुक भी। वहीं भारतीय पारंपरिक सूत के धागे, उसमें करीने से जड़े गए नग व मोती अथवा सोने चांदी के तार वाली राखियों का अलग ही महत्व है। टिकाऊ व परंपराओं में सूत जुड़ा होने के कारण चाइनीज बाजार ज्यादा हावी नहीं हो पाता। चाइनज मशीनों के बजाय हमारे हस्तनिर्मित राखियों का कोई सानी नहीं। मगर इस बार कोरोना फिर गलवान प्रकरण से उपजे हालात ने चाइनीज राखियों की डिमांड रोक दी है।

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अल्मोड़ा में 10, रानीखेत में 50 फीसद चाइनीज हिस्सेदारी

अल्मोड़ा में 90 फीसद स्वदेशी तो 10 प्रतिशत चाइनीज राखियां खपती रही हैं। शहर के बड़े थोक विक्रेता अंकित देवल कहते हैं, वह 70 से 80 हजार रुपये का कारोबार करते हैं। वहीं सौरभ अग्रवाल डेढ़ से दो लाख रुपये की राखियां बेच लेते हैं। हालांकि कुछ बच भी जाती हैं, जो पारंपरिक के बजाय चाइनीज ज्यादा रहती हैं। अंकित के अनुसार स्वदेशी राखियों के डिजाइन की लंबी सिरीज उपलब्ध है। उधर रानीखेत के मुख्य विक्रेता मनोज बिष्ट के मुताबिक बाजार में 50 फीसद चाइनीज राखियों का दबदबा रहा है।

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इस बार चाइनीज राखियों का बायकॉट

अंकित देवल कहते हैं, चाइनीज राखियां इस बार नहीं मंगाई जाएंगी। वहीं रानीखेत के कारोबारी मनोज के अनुसार चाइना के उत्पाद का बायकॉट कर स्वदेशी राखियां बेचने का निर्णय लिया गया है। यानी रक्षाबंधन बहनें भाइयों की कलाई पर स्वदेशी डोर ही बांधेगी।

==पैकेज ==

चीन को मात दे रहीं रिंगाल व पीरूल की राखियां

= महिलाओं ने बेची 60 हजार रुपये की रिंगाल राखी

अल्मोड़ा : चाइनीज राखियों के बाजार को अब रिंगाल व पीरूल की राखियां फीका करेंगी। इसे आसार कर दिखाया है राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन से जुड़ी सामाजिक संस्था उत्तरापथ ने। भंडारीगाव गंगोलीहाट (पिथौरागढ़) में बांस प्रजाति के रिंगाल को महिलाओं ने पर्यावरण के लिए घातक प्लास्टिक के विकल्प के रूप में अपनाया है। रिंगाल की टिकाऊ व आकर्षक राखियां बनाने के लिए उत्तरापथ संस्था से जुड़ी महिलाओं की मेहनत व लगन से हस्तशिल्प कारीगरों का एक कैडर विकसित किया गया है। वर्ष 2019 में मिशन ने पिथौरागढ़, बेरीनाग व मुनस्यरी क्षेत्रों में परियोजना को मंजूरी दी थी। वहां मुनस्यारी के जैती ग्राम पंचायत में 50 से ज्यादा महिला हस्तशिल्पियों को प्रशिक्षण दिया गया। बीते वर्ष रक्षाबंधन के पर्व से पूर्व 6000 से ज्यादा डिजाइनर राखियां तैयार कर बाजार में उतारीं। 60 हजार रुपये की बिक्री भी हुई।

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कोसी में पीरूल की राखियों के चार डिजाइन

दूसरी उपलब्धि मिली है जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान कोसी कटारमल के ग्रामीण तकनीकी परिसर में। यहां कार्यरत 15 से 20 महिलाएं दिन रात मेहनत कर विभिन्न डिजाइन में आकर्षक राखियां तैयार कर रहीं। बीते वर्ष सेंपल के रूप में 300 राखियां बनाई गई। लोगों की सराहना व इन्हें पसंद किए जाने पर अबकी पर्व के लिए नए सिरे से तैयारी शुरू कर दी गई है। परियोजना से जुड़े डॉ. सतीश आर्या के अनुसार बेकाम का समझे जाने वाले चीड़ की पत्तियां यानी पीरूल को करीने से बराबर मिलाकर उसकी चुटिया की आकृति दी जाती है। जोड़ने के बाद कागज के ऊपर फिक्स किया जाता है। फिर ठीठे के टुकड़ों को अलग अलग साइज में रचनात्मक डिजाइन देते हैं। फिलहाल चार डिजाइन तैयार किए जा चुके।


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