Move to Jagran APP

हल्दी और अदरक में बढ़ी काश्तकारों की रूचि

डीके जोशी अल्मोड़ा पहाड़ पर जंगली जानवरों से फसल की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 10:57 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 06:53 AM (IST)
हल्दी और अदरक में बढ़ी काश्तकारों की रूचि
हल्दी और अदरक में बढ़ी काश्तकारों की रूचि

डीके जोशी, अल्मोड़ा

loksabha election banner

पहाड़ पर जंगली जानवरों से फसल की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में राज्य में जंगली जानवरों से फसल नुकसान के छुटकारा को हल्दी व अदरक की खेती कारगर है। इस फसल को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में खेती से काश्तकारों का मोहभंग होने के कारण अब हल्दी व अदरक को आजीविका का जरिया बनाने की कवायद चल रही है। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कुल 6392 हेक्टेयर में हल्दी व अदरक की खेती की जा रही है।

राज्य में बढ़ रहे जंगली जानवरों के आतंक से काश्तकारों की फसलों को बचाना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जंगली जानवर जिसमें खासकर बंदर, लंगूर व सूअर काश्तकारों की मेहनत से उगाई गई फसल पर ऐन समय पर पानी फेर देते हैं, जिससे उनके समक्ष रोटी का संकट आन पड़ता है। इसलिए जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा के लिए पहाड़ में हल्दी व अदरक की खेती कारगर है। इन फसलों की विशेषता यह है कि एक तो इनको जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं दूसरा इनका उत्पादन काश्तकार छायादार स्थानों पर भी आसानी से कर सकते हैं। खाद्यान्न फसलों की खेती में कम जोत व कम उपज मूल्य को देखते हुए काश्तकारों का रूझान पिछले कई सालों से हल्दी व अदरक की खेती की ओर बढ़ रहा है। वर्तमान में राज्य में हल्दी का उत्पादन 1570 हेक्टेअर तथा अदरक 4822 हेक्टेअर भूमि में किया जाता है। हल्दी व अदरक की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी फसल में अन्य फसलों की तुलना में कीट रोग तथा जंगली जानवरों का प्रकोप बहुत ही कम अथवा नहीं के बराबर होता है। इस फसल में समसामयिक बारिश नहीं होने से अधिक सिंचाई की भी आवश्यकता नहीं होती है। इस तरह से पहाड़ पर हल्दी व अदरक की खेती काश्तकारों के आर्थिकी के उन्नयन में काफी लाभकारी है।

------------

हल्दी दैनिक उपयोग में काम आने के साथ ही इसका औषधीय महत्व भी है। आकस्मिक चोट लगने, कफ, वात व पित्त संबंधी विकारों के निवारण में भी यह बेहद लाभकारी है। हर मांगलिक कार्य में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसके पौधे का वानस्पतिक नाम करक्यूमा लौंगा है। वहीं अदरक का वानस्पतिक नाम जिनीबर ओफिसिनेल है। यह औषधीय युक्त कंद है। सर्दी, जुकाम के साथ ही खांसी में इसका उपयोग किया जाता है। इसके साथ-साथ यह बेहतर पाचक भी है।

-प्रो. पीसी पांडे, वनस्पति विज्ञानी

-------------------

काश्तकारों को हल्दी व अदरक की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए शासन की ओर से सब्सिडी पर इसका बीज उपलब्ध कराया जाता हैे। उत्तराखंड में 4822 हेक्टेअर में अदरक तथा 1570 हेक्टेअर में हल्दी की खेती वर्तमान में की जा रही है। शासन व विभाग की ओर से इसके रकबे को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। काश्तकारों को समय-समय पर इन फसलों की खूबियों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

-त्रिलोकी नाथ पांडे, मुख्य उद्यान अधिकारी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.