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अल्मोड़ा में जलधाराओं को पुनर्जीवित कर रहीं गंगा

दुश्वारियों के पहाड़ में संघर्ष करने वाली महिलाओं का यह आत्मबल ही है कि समस्याओं के समाधान की राह तलाशने में वे बहुत आगे हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 10:52 PM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 10:52 PM (IST)
अल्मोड़ा में जलधाराओं को पुनर्जीवित कर रहीं गंगा
अल्मोड़ा में जलधाराओं को पुनर्जीवित कर रहीं गंगा

संस, अल्मोड़ा : दुश्वारियों के पहाड़ में संघर्ष करने वाली महिलाओं का यह आत्मबल ही है कि समस्याओं के समाधान की राह तलाशने में वे बहुत आगे हैं। नैली डुबरोली गांव में मातृशक्ति ने जल संकट से पार पाने के लिए प्राकृतिक स्रोतों को पुनर्जीवित करने का जो बीड़ा उठाया है, वह सुकून दे रहा है। यहां की महिलाओं की टोली ने दो पारंपरिक नौलों को संरक्षित करने की मुहिम छेड़ी है। जलस्रोत के रिचार्ज क्षेत्र की तरफ पौधारोपण कर वर्षाजल को सहेजने का खाका खींचा है।

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लमगड़ा विकासखंड के सांगड़साहू ग्राम पंचायत के नैली तोक में 46 परिवार हैं। आबादी यही कोई ढाई सौ। ग्रामीणों की प्यास बुझाने को दुड़म पंपिंग पेयजल योजना भी बिना पानी है। मजबूरी में ग्रामीण डेढ़ किमी दूर नैली गधेरे से पानी की व्यवस्था करते हैं। स्रोत दूर होने के कारण दुश्वारियां भी खूब हैं।

सिरदर्द बन चुके इसी पेयजल संकट ने इन मेहनतकश महिलाओं को समस्या से लड़ने का हौसला दे दिया। गंगा देवी की अगुआई में महिलाओं की टोली इन दिनों दो पारंपरिक नौलों के उद्धार को पसीना बहा रही हैं।

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रीचार्ज क्षेत्र की तरफ करेंगे जैविक उपचार

गंगा देवी व उनकी साथी महिलाओं ने पारंपरिक नौलों के ऊपरी भूभाग में रीचार्ज क्षेत्रों में जैविक उपचार की योजना भी बनाई है। वहां बहुपयोगी बांज, उतीश, काफल के साथ ही मेहल, बेड़ू, तिमिल, पदम, बिदैंड़ (पर्वतीय नीम) आदि स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाने की योजना है।

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दिनभर निकाली जा रही गाद महिलाओं की टोली पारंपरिक नौलों की सफाई को दिनभर अभियान चला रही हैं। गांव के नंदन सिंह बताते हैं कि गंगादेवी व उनकी टोली से प्रेरित होकर अब युवाओं की फौज भी हाथ बंटाने में जुटी है। नौलें में भरी गाद को साफ किया जा रहा है।

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ये देवियां बढ़ा रहीं हाथ

पनुलीदेवी, गुड्डी देवी, माया देवी, देवकी देवी, जानकी देवी, ललिता देवी, लीला देवी, मीना देवी, मुन्नी देवी। ये सुबह जलस्रोत को पुनर्जीवित करने के लिए काम पर जुट जाती हैं। दोपहर बाद लौट चूल्हा-चौका करती हैं।

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आठ साल से बना संकट

दोनों पारंपरिक नौले आठ वर्ष पूर्व तक लबालब भरे थे। लोग इन्हीं से पानी पीते थे। शेष पानी से क्यारियां सींची जाती थीं। महिलाओं की मेहनत से ग्रामीणों को उम्मीद है कि इस बरसात नौलों की जलधारा फिर फूटेगी।


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