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हौसले की हरियाली को छू तक न सकी विकराल लपटें

जागरण टीम रानीखेत/सोमेश्वर वनाग्नि एक सुलगता सवाल। मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती जो जै

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Jun 2019 11:20 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jun 2019 06:34 AM (IST)
हौसले की हरियाली को छू तक न सकी विकराल लपटें
हौसले की हरियाली को छू तक न सकी विकराल लपटें

जागरण टीम, रानीखेत/सोमेश्वर : 'वनाग्नि', एक सुलगता सवाल। मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती जो जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र व प्राकृतिक जलस्रोतों को झुलसाती जा रही। बड़ी वजह है 'हक हकूक' जो अब ग्रामीणों को नहीं मिलते। इससे जंगल व ग्रामीणों के बीच दूरी बढ़ी है। तो वनक्षेत्रों को अपना समझ उनकी सुरक्षा कर पर्यावरण संरक्षण की पुरानी सोच बदल गई। समर्पणभाव घट गया। ऐसे में लपटों से जंगलात बचाना दूभर हो चला है। मगर यहां की घाटी और गांव व ग्रामीण वाकई प्रेरित करते हैं। विभाग से वनक्षेत्र गोद लिया। गांव व जंगल के बीच सेतु बने। सोशल मीडिया को ढाल बनाया। फिर एक संदेश पर आग बुझाने की होड़। अब परिणाम सामने है। पहाड़ में एक के बाद दूसरे जंगलात खाक हो गए पर यहां चीड़ बहुल जंगल की हरियाली खुशहाली बयां कर रही।

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यहां बात हो रही लोध घाटी (द्वाराहाट) से लगे सोमेश्वर घाटी के युवा फौज की। तीन वर्ष पूर्व युवाओं ने 'मेरा गांव मेरा जंगल' नारा दे नए सिरे से नाता जोड़ा। फिर फेसबुक व व्हाट्सएप पर इसी नाम से गु्रप बनाया। गांव में खेती व व्यवसाय करने वालों के साथ बाहरी शहरों में रह रहे नौकरीपेशा भी जोड़े। यहां से शुरू हुआ जंगलात की खबर व विचार साझा करने का सिलसिला। सोशल मीडिया पर आग संबंधी सूचना मिलते ही युवा टोली दौड़ पड़ती है जंगल की ओर। आज यही युवा आग से अपने जंगलात को बचा पर्यावरण सुरक्षा की पटकथा लिख रहे हैं।

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सुकून दे रहे तीन हजार बहुपयोगी पौधे

वर्ष 2017 में शुरूमुहिम रंग लाने लगी है। वन विभाग से उधार में खालिस चीड़ के जंगलात में तीन वर्ष पूर्व लगाए गए बांज, बुरांश, काफल, उतीश आदि बहुपयोगी प्रजातियों के लगभग तीन हजार नन्हे पौधे अब पेड़ जैसी शक्ल लेने लगे हैं।

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छुट्टी पर गांव की दौड़

'मेरा गांव मेरा जंगल' गु्रप से जुड़े कई नौकरीपेशा युवा साप्ताहिक छुट्टी या त्योहारी अवकाश पर गांव पहुंचते हैं। यानी छुट्टी का इस्तेमाल मौजमस्ती नहीं जंगल संवारने में होता है।

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जलस्रोतों में आने लगी जान

भानाराठ व अर्जुन राठ ग्रामसभा के उच्च वनक्षेत्रों में तीन वर्ष में किए गए पौधरोपण ने जलस्रोतों में नई जान ला दी है। जीवनदायिनी कोसी के सहायक जलधारों का पानी बढ़ने लगा है।

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ताकि जंगली जानवर आबादी में न घुसें

युवा फौज पर्यावरण संरक्षण के साथ जंगली जानवरों से खेती बचाने पर भी ध्यान दे रही है। इसके लिए पांगर, रीठा, अखरोट, बमौर, दाड़िम आदि पौधों को प्राथमिकता दी जा रही। ताकि वन्यजीवों को भोजन जंगल में ही मिलता रहे।

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प्राकृतिक तारबाड़ पर जोर

पौधरोपण क्षेत्र की घेराबंदी को सोलर फेंसिंग सरीखे महंगे उपाय नहीं बल्कि रामबांस की घनी झाड़ियां उगाई जा रही। रामबांस स्वरोजगार का ठोस जरिया भी है।

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रानीखेत से मंगाए पौधे

अर्जुनराठ, भानाराठ आदि आठ दस गांवों के पर्यावरणप्रेमी रानीखेत स्थित पौधालय से पौधे मंगाते आ रहे। आज पर्यावरण दिवस पर भी 500 से एक हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। पौधे उपलब्ध कराने वाले रेंज अधिकारी कालिका वन अनुसंधान केंद्र आशुतोष जोशी ने युवाओं की पहल को प्रेरणादायक बताया।


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